________________ 151 धर्मः। क्तिभृताननाः // 70 // टीका अथ तजवन स्त्रीनिः / कौतुकाकुलबुधिनिः॥ कृतनानाविभुषाभिः / परितः परिपूरितं // // 31 // गवादानिमुखाः काश्चि-स्वराविस्रस्तवाससः // अन्योन्यघट्टनोबिन्न-मुक्ताहारादिभूषणाः / / 75 // पीनस्तनकृतान्योन्य-पीमनाश्चलकुंडलाः / मंजुमंजीरशब्देन / वाचालचरणहयाः // 33 // किं न तृप्तासि दुस्तृप्ते / पार्श्वतो शव दुर्लगे // विवदंत्यश्चेत्यादीनि / वचांस्यंबुरुहाननाः // 7 // मुक्त्वा व्यापारजातानि / तमैदांत पुरांगनाः // स्वरूपमेतन्नारीणां / यतस्ताः कौतुकाकुलाः // 35 // चतुर्निः कलापकं / / एका ब्रूते वरो नर्ता / परा ब्रूते वरांगना // अन्योजयमपि श्रेष्टं / वदतीह मुहुर्मुहुः // 16 // प्रतिहारनरेणाथ / मंदमदं विसर्जितः / पुरनारीजनः सर्वो / गतो नि. जनिजालयं // 7 // संतोषामृतममाना-मन्योन्यं प्रीतियोगतः // ददतां भुंजतां चैव / गतः कालः कियानपि // 70 // रणकेसरिणा दीदा / प्रपन्ना जिनशासने / / संतोषसारसूरीणां / समी पेनक्तियोगतः // 7 // सर्वजीवानयं दत्वा / शीलमासेव्य निर्मलं // तपश्च ऽश्चरं तप्त्वा / वि. नाव्य वरनावनाः // 70 // अंते चाराधनां कृत्वा / मृत्वानशनपूर्वकं // श्रौदारिकी तनुं त्यक्त्वा / / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust