SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्म | न्यया दृशा / / उक्तो योऽपि नो भद्र / करे कुरु निजायुधं // 27 // निरायुधेषु दीनेषु / पति तेषु नतेषु च / / प्रहार न प्रकुर्वति / संतः सन्मार्गगामिनः // 60 // तथा जो काविमौ दिप्तौ / वामदक्षिणकदयोः / / नरौ निपुण यावेवं / पीमयसि निरंतरं // 61 // तो महाबलः प्राह / श्रू. यतां कथयामि ते // कपालकुंझनामा च / वामतो मंत्रसाधकः // 6 // यमुनो दक्षिणेनास्य / पुमानुत्तरसाधकः / अत्रैवाविधिना विद्यां / साधयंतौ विलोकितौ // 63 // युग्मं // अवस्थामीह. शीं नीता-वन्येषां शिक्षणाकृते // दुर्मेधसोऽटपसत्वाश्च / खेद्यतेऽत्र यतोऽनिशं // 64 // त्वत्साहससमाकृष्ट-चेता वच्मि वचो हितं // ब्रूहि यत्ते प्रयवामि / ह्यमोघं देवदर्शनं / / 65 // कुमा रः प्रोवाच-देवयोने न मे कार्य / केनाप्यस्तीह वस्तुना // कूजती करुणं मुंच / कदागतनराविमौ / / 66 // मुक्तावर्धमृतौ तेन / तौ नरौ लोललोचनौ // गणितौ च कुमारेण / यात नद्रौ युवां गृहं // 67 // योऽपि निकटीभूय / वेतालेन प्रजापितः // यदहं वच्मि तत्कार्य / जवता परहितैषिणा // 17 // नितांतं यद्यपि त्यागी / महाविनयसंगतः // वीर्यवानुत्तमैश्वर्यो / नवान गु. | पवितषितः // 6 // // मदर्शनं तथाप्येत-त्तव मा वृदनर्यकं / / याचेऽहं तेन कार्येण / नवंतं ग्र. PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy