________________ 137 धर्मः। ___ मलयसुंदरस्याथ / मेघनादस्य च स्वयं // रहस्यं हृदि निक्षिप्य / गतोऽसावसिना सह / / // 14 // आत्मा संदर्शितस्तेन / खेचरस्य गुहामुखे // निषामः कुमरस्तत्र / खेचरार्पितविष्टरे // // 15 // यत्कर्तव्यं च तब्रूहि / सर्वत्र प्रगुणा वयं // जुहोमि श्रीफलैरमिं / मंत्रजापपुरस्सरं // 16 // विघ्नान सर्वान निराकुर्व-स्तिष्ट त्वं सावधानकः // निर्भीतः साहसोपेत-स्त्वदायत्ता हि सिघ्यः // 17 // लिखितं खेचरेणापि / रक्तचंदनममलं // तदेकदेशे लिखिता / देवताबहुरूपिणी // 17 / / सारकाष्टमृते कुंडे / ज्वलज्ज्वालासमाकुले // होमं कर्तुं समारब्धः। श्रीफलैमत्रपूर्वकं // 15 // अत्रांतरे समाधूत-धूलीतृणमहीरुहः // वातो वातुं समारब्ध-श्वकंपे मेदिनीतलं.॥२०॥ घ. नो गर्जितुमारब्धो / विद्युनंपाभिरुजिता // न किंचित्तमसा तत्र / दृश्यते. पुरतः स्थितं // 21 // शोणशोणितधारानि-वर्षत्याशु घनाघनः // नड्डीय जीवितं याति / शिवानां फेत्कृतारवैः ॥शा | घूकघूत्कृतशब्देन / गुहामु प्रतिसर्पता // कर्णान्यागतं नैव / श्रूयते जनजल्पितं // 3 // मु. क्तकेशा विवस्त्राश्च / करोल्लालितकर्तिकाः / / ज्वाला मुखेन मुंचंत्यो। योगिन्योऽनृत्यनंबरे // 5 // | स चासनसमासीनो / यावदास्ते नृपांगजः // खेचरोऽपि च नि को-प्रजुबळांतवेदसं // 25 // Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.