________________ 130 धर्मः | तयोः सत्वं समालोक्य / प्रशांता च बिजीषिका // अत्रांतरे समायातः / क्षेत्रपालो महाबलः // // 16 // तयोः सत्वपरीक्षार्थ / मलयागस्य नायकः // क्षेत्रपालो महासत्व-दोजितानेकसाधकः // 27 // युग्मं / जो मानव किमर्थ ते / करे खको विलोक्यते // मंत्रजापकरः कोऽयं / देवी का लिखिता भुवि // 27 // मलये मां विमुच्यान्यं / देवं च ध्यायतस्तव // का वैदग्धी कुतः सि. EiH / कुतस्ते जीवितं वद // 27 // कुमारोऽवग् न ते युक्तं / वक्तुमीदृग्वचः सुर / / राकाचंद्रः सुधां सूते / न कदाचिद्दवानलं // 30 // विद्यासाधनकल्पोऽयं / यदन्या देवता कृता / मलयः कस्य संबंधी / वीरजोग्या वसुंधरा // 31 // श्रुत्वेदं स कुमारस्य / सदएँ कर्कशं वचः // सावेशो विहितावहो / जगादेदं महाबलः / / 32 // पाप ते नाशयाम्यद्य / पौरुषं पुरुषाधम // न हि सा. म्येन शाम्यति / उर्जना दुष्टचेतसः // 33 // . .. : विधाय विकृताकारं / वेतालाकृतिमात्मनः // ततो वर्धितुमारब्धो / दरकारी तनूभृतां // 34 // दक्षिणस्यां नरं कंचि-रखाव्यग्रकर वहन् / कापालिकं तु वामायां / क्रंदंतं करुणैः स्वरैः // 35 / / | तयोः कन्कियोत्कृत्य / खादन मांसानि शोणितं / पिवन हसंश्च हास्येन / नृत्यन्नुच्चैश्च विवरं / / / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust