________________ धर्मः // 17 // रुष्टया च विषं दत्वा / मारिता मधुसुंदरी // नणितश्च सशृंगारं / तद्भर्ता मधुसुंदरः // // 15 // अमृतेनेव सिच्यते / नेत्रे दृष्टे त्वयि मम // प्रतिपद्यस्व मां गार्या / सफलां कुरु याच. नां // 20 // श्रुत्वेदं स्तंभिते तस्य / श्रोतसी कंपितं शिरः // सोऽवग्यो न वक्तव्यं / त्वयेदृदं ममाग्रतः // 21 // ततो वैलक्ष्यमापन्ना / विदित्वा तस्य निश्चयं // श्रात्मानमवटे दिप्त्वा / मृता सा दुर्गतिं गतः // 12 // निघ्नंति निजगारं / खं पुत्रं मारयति च // यात्मानमपि निघ्नंति / | जीवा विरतिवर्जिताः // 23 // शंखचूडस्य जीवोऽपि / मध्यमगुणयोगतः // मृत्वा वणिक्सुतो जा. | तः / शुधबुझिगुणाश्रयः // 24 // रत्नचंद्रकृतानिख्यः / सदाचारपरायणः // सद्बुधिश्च गुणाधारो | | धार्मिको धर्मवत्प्रियः // 25 // दुर्गिलापि शुनीजावा-दुध्धृत्याजनि पुत्रिका // वणिजो वसुद त्तस्य / नाम तस्या वसुंधरा // 26 // गृहीता रत्नचंण / कथंचिदैवयोगतः // अहो धातुरकौशव्यं / विषममृते योजितं // 27 // दौर्जाग्यं पृष्टतो लमं / समायानं पुराकृतं // अहो पृष्टिं न मुं. चंति / कृतकर्माणि देहिनां / / 2 / / दृष्टा दहति नेत्राणि / स्पृष्टा करतलइयं // जुक्ता दहति स. | वागं / मुखदा दूरतः स्थिता // 25 / / दुर्गहावासदुःखेन / दग्धदेहस्य सर्वदा // वणिजो रत्नचंद्र | P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust