________________ 110 धर्म र्धाहारसंहारां / देढसंहारहेतवे // मासमानां महासत्वः / संनिषामः शिलातले // 70 // विधाया | राधनां वीरो / निधूयौदारिका तनूं // पंचमी गतिमापन्नो / यत्र यांति निराश्रवाः // 11 // मत्वेदं सर्वदा सद्भिः। कार्यो धर्मे समुद्यमः // सुलजाऽमलना येन / मुक्तिरामा नवेत्करे // 12 // यः करोति जिनेंडाणां / सधैः पादपूजनं / लनते सर्वतो लक्ष्मी / यथासौ रत्नसुंदरः / / 37 // ति गंधपूजाकथानकं समाप्तं // श्रीरस्तु // - गंधपूजाफलं प्रोक्तं / स्वर्गमोदफलप्रदं // नावसारस्य धूपस्य / फलं संप्रति नण्यते // 1 // समस्ति नारते वर्षे / निवासः सर्वसंपदां // साधुसाधर्मिकाकीर्णो / देशो देशशिरोमणिः // 2 // काशीजनपदो नाम / पुरी तत्र मनोरमा // वाणारसी जने रूढा / धनधान्यसमाकुला // 3 // त. त्रास्मित्तमातंग-कुंमनिर्भेदकेसरी / साहसांकसमः शूरो / नरेंद्रो नखाहनः // 4 // तत्रास्ति शं. खचूमाख्यो / विप्रो नार्या च दुर्गिला // दुभंगा दुर्मुखा दृष्टा / निर्दया बहमुष्टिका // 5 // वर्जि ता शंखचूडेन / अर्गदौर्भाग्यपीमिता // कामगोगपरित्यक्ता / कालं नयति दुःखिता // 6 // यु. | म // शंखचूडलघुनाता / मधुसुंदरसंझितः // दानधर्मरता तस्य / गेहिनी मधुसुंदरी // 7 // एवं | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust