________________ धर्मः / रसं रूदं / विसं स्नेहवर्जितं // एषणादिविशुद्धं व / दोषमुक्तं समंततः // 17 // युग्मं // तस्यै| वाथ गुरोः पार्था / सदा संविममानसः // पठिताशेषसूत्रार्थो / गीतार्थो गुरुतालयः // 60 // मो. दमाहितस्वांतः / संप्राप्तपरमोदयः // संयमैकरतो धीरः / सम्यग्दर्शननिर्मलः // 61 / सम्यग्झा११७ नातियुक्तात्मा / सम्यक्चारित्रतत्परः // अनुप्रेदाचिरात्मानं / भावयन्ननिशं मुदा // 61 // संयम स्योपकारासु / धर्मानुगुणमिषु // मुनिभिर्विमलाचौरैः / सहितासु निरंतरं / / 62 // विहरन सर्व जीवानां / दयावांश्च पिता यथा // बाह्येन च सहांतःस्थं / वर्धयन संततं तपः / / 63 // यावासतां महर्षीनां / परिप्राप्तः प्रशांतधीः // दमश्रिया परिष्वक्तः / परिशुधसुदर्शनः // 64 // उच्चैरुच्चैर्गुः णस्थान-सोपानारोहणाहतः // सबाह्याभ्यंतरोदन-ग्रंथग्रंथिविवर्जितः // 65 // श्रुतेन सकलं पश्यन् / कृत्याकृत्यं महामुनिः // महासंवरसंपन्नः / सातयन् कर्मसंहति // 66 // प्राणधारणमात्रार्थ / भुंजानः सुत्रदेशितं / / धर्मार्थ धारयन् प्राणान् / धर्म मोदार्थमर्जयन् // 67 // आनंद गव्यलोकानां / कुर्वन्नुत्तमदर्शनः // चरितेनोपमानतो। यथोक्तश्च तपस्विनां // 6 // चिरं विहत्य मे. |दिन्यां / तपसा दीए विग्रहः / गुरुणा समनुझात-श्वकारानशन क्रियां // 65 // कुलकं / / चतु- | PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust