________________ धर्मवीद्रव्यार्थः / ग्रामारामादि चिंतितं // 4 // कल्याणकानि यात्राश्च / स्थानिष्क्रमणादिकं // साधुः | साधर्मिकाणां च / सत्कारं कुर्वता सदा // 4 // प्रभावना कृता गुर्वी / शासनस्याखिले जने // "| सम्यक्त्वं निर्मलं जातं / सिधिः करतले कृता // 45 // युग्मं // चत्वारोऽस्य सुता जाता / जात रूपसमप्रजाः // नुक्ता निरुपमा नोगा / मानुष्यं सफलीकृतं // 50 // विहरंतः समायाताः / सूर | यः श्रुतसागराः / / शांतिसागरसूरीणां / शिष्याः सर्वत्र विश्रुताः // 11 // लतासुंदरनद्याने / स्थिताः साधुजनोचिते // प्राशुके वसुधादेशे / त्रसजीवविवर्जिते // 52 / रत्नसुंदरपालो / वंदना 2 समागतः // वंदित्वा विधिना सुरिं / निषलो धरणीतले / / 53 // गंजीरमेघनादेन / प्रारब्धा धर्मदेशना // संवेगजननी हृद्या / जवनिर्वेदकारिणी // 55 // श्रुत्वा च देशनां राजा / ह्यनिषिच्य निजे पदे / / रत्नशेखरनामानं / रत्नमालातनूद्भवं / / 55 // विस्मापयन जनं सर्वे / त्यागनो. गादिनिर्गुणैः // श्रुतसागरसूरीणां / समीपं प्राप्य नृपतिः // 16 // तृणवच्च परित्यज्य / वस्त्रानर पञ्षणं // मुद्रा जग्राह प्रव्रज्यां / सकर्मनिषूदनीं // 17 // त्रिनिर्विशेषकं // स्वीकृतोऽन्निग्रह | स्तेन / कर्मनिर्मूलनाकृते // आजन्म हि मया षष्टा-भोक्तव्यं कारणं विना // 27 // तदपि नी. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust