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________________ 110 धर्मः | यमाश्रमः // 70 // तस्या रूपं वयो वर्ण / विज्रमं वीदय विस्मितः // सर्वसीमंतिनीसीमा / वेधसे यं विनिर्मिता // 1 // एतस्यां मन्मनो याति / धत्ते लड़ां कुलक्रमः / एषापि सानुरागेव.। ल. दयते किं ममोचितं // 2 // क्वेदं कर्म विजन्मनो मम हहा वैखानसी तापसी / रूपं रंजितलो. कलोचनमढो चित्तस्य मे विक्रिया // वेदार्थस्मृतिगोचराः क्व च गिरः क्वेयं मनोदुर्खना / चेतश्चिंतनमेव ते यदि परं धन्यः करं धास्यति // 3 // लो दूरतरं यादि / गब गब कुलक्रम // शौच व्रज त्वमन्यत्र / थकालोऽयं नवादृशां / / 4 // कुरंगकेसरा त्राण-मत्राणस्य ममाधुना // ततो मया समारब्धा / तया साध रतक्रिया // 5 // अवांतरे समायातः / शृंगवैरो वनांतरात् / / एतद् दृष्ट्वातिरुष्टेन / शापो दत्तस्तपस्विना / / 76 // हस्तपादशिरोनिश्च / लोष्टकटपेन हि त्वया / / ब्रमितव्यं महाटव्या-मेष ते पापनिग्रहः // 7 // सादरं पादलमेन / दामितोऽसौ मया मुनिः॥ शेषतापसलोकैश्च / दृष्टांतेन प्रबोधितः / / 77 // किं वराकः करोत्येष / सद्विवेकविवर्जितः // श. कादयोऽपि नो शक्ताः / कर्तुमिद्रियनिग्रहं // जय || कार्याकार्य न जानंति | जीवा मन्मयपीमिताः // अपदेऽपि प्रवर्तते / यतोऽवाचि विचदणैः // 30 // किमु कुवलयनेत्राः संति नो नाक | P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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