________________ 103 धर्मः / संसारांबुधिमनेन / यानपात्रसमो मया // संप्राप्तस्त्वं च लास्येऽहं / पारं धर्मप्रजावतः // 100 / / जीवघातानिवृत्तोऽहं / यावज्जीवं तवाग्रतः // निशि नक्तं मुरापानं / मांसमझि न सर्वदा // 1 // नद्रकत्वं समापनो / देवजक्तिपरायणः // गुरुपूजारतो नित्यं / कालं नयति माधवः // 2 // य. न्यदा च समायातः / सुगंधपुटिको नरः // प्रयोजनवशात्कोऽपि / गंधको माधवांतिकं // 3 // प्र. दत्तो रूपकस्तस्मै / गंधान जग्राह माधवः // भावसारं स्वहस्तेन / तेन तैरर्चितो जिनः // 4 // पु. एयानुबंधि यत्पुण्यं / गंधपूजां प्रकुर्वता / निर्वर्तितं तदा काले / नदयस्तस्य सांप्रतं // 5 // ततो दानरतो मृत्वा / मध्यमगुणयोगतः // जातस्त्वं सुंदराकारः / स्वर्णसुंदरनंदनः // 6 // एतत् श्रुत्वा कुमारोऽपि / रोमांचांचितविग्रहः // सानंदः सूरिपादांते / श्रावकत्वं प्रपन्नवान् // 7 // सर्वज्ञो देव. ता मह्यं / गुरवस्तु सुसाधवः / सर्वझोक्तो दयासारो। धर्मो धर्मधिया मम // 7 // अस्तं गते दि. वानाथे / न करोमि जिक्रियां // करोमि स्मरणेनापि / त्रिसंध्यं चैत्यवंदनं // 7 // सूरिणा न. णितं भद्र / प्रतिपत्तिर्न दुष्करा // गृहीतपालना गुर्वी / सैव सर्वसुखावहा // 10 // तत्र यत्ना प|रा कार्या / सत्यवाचो महाधिया // प्रतिपद्य ये न कुर्वति / ते नूनमधमाधमाः // 11 // तथा त्वं / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust