________________ धर्म- परप्राणप्रहाणेन / निजप्राणप्रधारणं // न तत्संतः प्रशंसंति / शरं संहर माधव // 70 // कोदंमें टीका विगुणं कृत्वा / शरं संहृत्य सत्वरं // नमस्कृत्य मुनेः पादौ / निषाः सोऽपि तले // 1 // पृष्ट श्च स मुनिस्तेन / भाषते किमयं मृगः // मुंचनशूणि शोकातः / साधुः प्राह निशामय // ए॥ 101 त्यक्तं जन्मवनं तृणांकुरवती मातेव मुक्ता स्थली। विभंजस्थितिहेतवो न गणिता बंधूपमाः पाद | पाः / / बालापत्यवियोगदुःखविधुरा मुक्ता मृगी वल्लना / धावंतः पदवीं तथाप्यकरुणा व्याधा न मुं. चंति मे // 3 // मामेवं कथयत्येष / स्वदुःखं निजया गिरा // यतो मातृसमः प्रोक्तः / साधुव. र्गः शरीरिणां // 4 // तवापि युज्यते नैव / कर्तु कर्म सुनिघणं / परं मारयता येन / नवत्यामापि घातितः // 5 // क्रियते यानि कर्माणि / रागद्वेषविसंस्थुलैः // तेषां फलविपाकं हि / जानाति यदि केवली // 6 // यतः-हन्मीति जन्मजनितं सुकृतं निहंति / शस्त्रग्रस्त्रि नवनिवमेव धर्म // शस्त्रानिघातसमये शतजन्मजातं / सर्व निहंति सुकृतं सति जीवघाते // // श्रास्मैव घातितस्तेन / परं नता न संशयः // यतो हन्यादसौ हंता / लजते शतशो वधं // एज् // शरासनं शराः सर्वे / माधवेन द्विधा कृताः // श्रुत्वा धर्म दयासारं / मुनिमुखाइिनिर्गतं // // | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. - Jun Gun Aaradhak Trust