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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र यह छड़ी और अपने महल में चली जा। इस छड़ी से तेरे पति के शरीर को तीन बार स्पर्श कर, इससे तेरा पति चंद्र निद्रा में से जाग उठेगा। मैं अब मंत्रप्रयोग से नगरजनों को निद्रामुक्त करती वीरमती ने मंत्रप्रयोग किया और उसके प्रयोग से सारे नगरजन तुरन्त निद्रामुक्त होकर - अपने अपने नित्यकर्म में जुट गए। इधर गुणावली भी सास की दी हुई, मंत्रित कनेर की छड़ी लेकर अपने महल में चली आई। उसने देखा कि पति राजा चंद्र रजाई ओढ़ कर गाढ़ी नींद सो रहा है। राजा ने तो नींद का बहाना बनाया था, इसलिए उसने भी गुणावली को आते हुए जान लिया। रानी ने अपने पति को पूर्ववत् सोता हुआ देखा, तो उसके मन की आशंका दूर ही गई / वह बहुत खुश हो गई। उसने धीरे धीरे कनेर की छड़ी से तीन बार राजा के शरीर को स्पर्श किया। राजा ने भी मानो गाढी नींद में से जाग रहा हो, इस प्रकार का बहाना बनाते हुए बार-बार करवटें बदल कर आलस्य झटकना प्रारंभ किया। उसे जागते हुए देख कर अंदर ही अंदर प्रसन्न हुई रानी गुणावली ने अपने पति राजा चंद्र से बड़े प्रेम से कहा, - "हे प्राणनाथ, जागिए। प्रभात हो गया है। आज तो आप बहुत देर तक सोते रहें। मानो एक महीने तक लगातार जागना पड़ा हो, इस तरह से आप सारी रात गाढी नींद सो रहे है। रात को मैंने हँसी-विनोद के लिए आपको जगाने की कई बार कोशिश की लेकिन आपने तो पलकें भी नहीं उठाई / क्या आप रात को सपने में किसी रमणी के प्रेमसागर में डूब गए थे। हे प्रियतम, जल्द उठिए और मुझे आपके दर्शन करके कृतार्थ होने दीजिए। राजसभा में पहुँच जाने का समय निकट आ पहुँचा है। महाराज, जल्द जागिए। यदि आपकी माताजी को इस बात का पता चला कि आप अभी तक नहीं जागे हैं, तो वे बिना कारण आगबबूला हो जाएँगी। चंद्रराजा कपटनिद्रा को त्याग कर जाग गया। उसने बहाना बना कर आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा, “अरे / कैसे इतनी देर तक नींद आ गई मुझे ? सूर्योदय भी हो गया। रात के झंझावात से मेरा मन अस्वस्थ ही गया था, इसीलिए जागने में इतनी देर हो गई। लेकिन हे प्रिये, तेरी आँखों की और देख कर तो ऐसा लगता है कि तू सारी रात जागती रही है। सच-सच बता तू कहाँ चली गई थी ? तेरी आँखें और चेष्ठाएँ देख कर ऐसा लगता है कि तू रात को कहीं जाकर अभी-अभी लोटी है।" राजा की बात सुन कर रानी गुणावली चकित रह गई। लेकिन सत्य छिपाते हुए वह बोली, "हे प्रियतम, आज आप ऐसा क्यों बोल रहे है ? क्या मैं आपके चरणकमल छोड़ कर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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