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________________ 72 श्री चन्द्रराजर्षि चरि चंद्र राजा ने सिंहलनरेश और हिंसक मंत्री से अपनी पीड छुड़ा लेने के लिए बहु कोशिश की, लेकिन स्वार्थान्ध बने हुए सिंहलनरेश और महामंत्री हिंसक अपने विचार से ट से मस न हुए। उन दोनों को अपने विचार पर मजबूत जान कर परो.पकार-परायण चंद्र राज ने मन में सोचा, यह कार्य किए बिना यहाँ से छूटना संभव नहीं लगता है / इसलिए कुछ दे विचार करके मजबूर होकर चंद्र राजा ने इस कार्य के लिए अनुमति प्रदान कर दी। चंद्र राज से स्वीकृति पाकर सिंहलनरेश हिंसक मंत्री के हर्ष का पार न रहा। अब राजा ने तुरंत अपने बरातियों और कर्मचारियों को वरराजा की वरयात्रा (जुलूस के लिए तैयारी करने का आदेश दिया। विविध वाद्यों की आवाज से आकाश गूंज उठा। हाई घोड़े और सेना सज्ज हो गई। विवाह के लिए वचनबद्ध हुए चंद्र राजा को सुगंधित जल से स्नान कराया गया / ऊ मूल्यवान् वस्त्रालंकार पहनाए गए और उत्तम रीति से सजाए हुए अश्वरत्न पर चंद्र राजा वर के रूप में और वेश में बिठा कर वाद्यों की मधुर ध्वनि के साथ, ताशे-बाजे बजाते हुबरातियों के साथ राजमंदिर की ओर ले जाया गया। रास्ते में वरराजा को देखने के लिए लो की बहुत बड़ी भीड इकट्ठा हो गई थी। वरराजा का अलौकिक रुपसौंदर्य देख कर सब लो मुक्त कंठ से उसकी प्रशंसा कर रहे थे ! उस समय आकाश में चंद्रमा दुगुनी शोभा घारण क इस संसार के इस अद्वितीय ‘चंद्र'की अद्भुत शोभा देखने के लिए क्षणभर के लिए रूक ग / आकाश में स्थिति चंद्रमा को लगा कि धरती पर मुझ से अधिक उज्जवल यह चंद्रमा कहाँ आया ? यद्यपि वरराज का स्थान चंद्र राजा ने ग्रहण कर लिया था, लेकिन बरातियों में आई स्त्रियाँ राजकुमार कनकध्वज का नाम ले-लेकर ही नृत्य कर रही थी और गीत गा रही थी अश्वरत्न पर वरराजा बन कर बैठे हुए चंद्र राजा पर रास्ते में और अटारियों में दर्शकों की दृष्टि सबसे पहले पडती थी। जुलूस चल रहा था कि रास्ते में खड़े एक दर्शन अचानक कहा, “हैं, यह क्या बात हैं ! यह वरराजा तो कोई दूसरा ही लगता है। यह सिंहलका पुत्र राजकुमार कनकध्वज नहीं लगता है।" इस दर्शक की बातें सुन कर एक चतुर दर्शक बोल उठा, "तूं तो मूर्ख लगता है। हम लोगों ने अब तक कभी राजकुमार कनकध्वज को अपनी आँखों से देखा है ? फिर तू मूर्खताभरी बात क्यों कहता है ? राजकुमार कनकध्वज के रुपसौंदर्य के संबंध में अब तक m Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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