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________________ 70 ... श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र किया है। मंत्री ने अब राजकुमार के विवाह की तैयारी भी प्रारंभ कर दी है। तुम्हे तो मालूम ही है कि राजकुमार जन्म से कोढ़ी है। अब तक ‘राजकुमार कोढ़ी है' यह बात सबसे छिपा रखी है, लेकिन अब राजकुमारी के साथ पाणिग्रहण कराते समय यह बात थोडे ही छिपी रह सकेगी ? राजकुमार कोढ़ी है यह बात जानकर राजकुमारी उसके साथ विवाह करने से इन्कार कर देगी और यह अपमान देख कर मुझे तो ज़हर खाकर मर जाना पड़ेगा। हे माता, उस स्थिति में मेरी नाक कटजाएगी, संसार में मेरी फजीहत हो जाएगी। इसलिए माँ, मेरी लाज रखना अब तुम्हारे ही हाथ में है / तुम राजकुमार को स्वस्थ कर दो, उसका कोढ़ नष्ट कर दो, माँ ! राजकुमार के कोढ़निवारण के लिए प्रार्थना करने के उद्देश्य से ही मैंने तुम्हें यहाँ बुलाने का कष्ठ दिया है। हे देवी, तुम हमारी कुलमाता हो / कुल की लाज रखना तुम्हारा पवित्र कर्तव्य है।" ____राजा की बात सुन कर देवी ने कहा, “हे राजन्, पूर्वजन्म के वेदनीय कर्म के उदय के कारण तेरा पुत्र जन्मजात कोढ़ी है। उसके कोढ़ का निवारण करने में मैं समर्थ नहीं हूँ / इस संसार में प्रत्येक जीव को अपने किए हुए कठिन कर्म का फल भुगतना ही पड़ता है। दूसरी बात यहा है कि मैं कोई ऐसी शक्तिशाली देवी नहीं हूँ कि किसी के जीवन में बहुत बड़ा हेरफेर कर सकूँ। हे राजन्, क्या तू यह कर्मसिद्धान्त नहीं जानता है कि - "अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्।' लेकिन हे राजन्, फिर भी मैं तुम्हारी चिंता के निवारण का एक उपाय बताती हूँ। वह तू ध्यान से सुन ले। राजकुमार कनकध्वज के विवाह की रात को पहला प्रहर बीत जाने के बात विमलापुरी की पूर्व दिशा के दरवाजे से आभानरेश चंद्र, उसकी सौतेली माता वीरमती और रानी गुणावली यो तीनों आभापुरी से तेरे पुत्र का विवाहमहोत्सव देखने के लिए आएँगे। आभानरेश चंद्र गुप्त वेश में अपनी सौतेली माँ और रानी के बाद उसी पूर्व दिशा के दरवाजे से प्रवेश करेगा। चंद्रराजा के उस दरवाजे से अंदर प्रवेश करते ही तू उसे अपने पास बुला ले और उससे प्रार्थना कर कि, 'हे राजन्, आप राजकुमार कनकध्वज़ के लिए उसके स्थान पर वर बन कर प्रेमलालच्छी से विवाह कर लीजिए।' ऐसा करने से, हे राजन्, तेरी चिंता दूर हो जाएगी।'' इतना कह कर देवी अदृशय हो गई। कुलदेवी के बताए हुए उपाय के बाद राजा खुश हुआ और वह भी अब अपने राजकुमार के विवाह की तैयारी में जुट गया। धीरे-धीरे राजकुमार कनकध्वज की बरात के प्रस्थान का दिन P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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