________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र - राजा को इस सुंदर अश्वरत्न की इस वक्रगति के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था। इसलिए एक बार राजा इस वक्रगति अश्वरत्न पर सवार हुआ और अपनी सेना को साथ लेकर शिकार खेलने के लिए वन की ओर चल पड़ा। वन में अनेक वन्य पशुओं का शिकार करते-करते अचानक राजा की नज़र एक हिरन पर पड़ी। राजा हिरन का पीछा करने लगा। मृत्युभय के कारण हिरन भी चौकड़ी भरता हुआ चल निकला और बहुत दूर जाकर कहीं झाडी में गायब हो गया। राजा की पकड में यह हिरन नहीं आया। बहुत देर तक और दूर तक हिरन के पीछे दौड़ लगाने के कारण राजा बहुत थक गया था। घोड़े को रोकने के लिए राजा उसकी लगाम जोर से खींचने लगा। लेकिन यह घोड़ा न रुका, उल्टे वह दुगुनी गति से जोर लगा कर दौड़ता ही रहा। घोड़े को रोकने के राजा के सारे प्रयत्न विफल हुए। घोड़े के साथ-साथ राजा बहुत दूर निकल गया। राजा की सारी सेना बहुत पीछे रह गई। घोड़े पर बैठा हुआ राजा अब इस चिंता में फँस गया कि यह घोड़ा कब और कहाँ जाकर रुकेगा ! राजा इस बात का निर्णय नहीं कर सकता था। उसकी थकावट बढती ही जा रही थी। इतने में राजा की नज़र एक साफ-सुथरे और स्वच्छ पानी से भरे हुए सरोवर पर पड़ी। राजा ने देखा कि सरोवर के किनारे पर एक वटवृक्ष भी है। यह वटवृक्ष बिलकुल रास्ते के किनारे पर ही था। राजा ने झट से मन में निर्णय किया कि इस वटवृक्ष के नीचे पहुँचते ही मैं उसकी किसी डाली को पकड़ लूँगा और घोड़े को वहीं छोड़ दूंगा। भयजनक लगनेवाली वस्तु चाहे कितनी ही सुंदर और अमूल्य क्यों न हो, उसका त्याग करने में मनुष्य एक क्षण की भी देर नहीं करता है। चलते-चलते संयोग से घोड़ा जिस क्षण वटवृक्ष के नीचे आया, राजा ने वटवृक्ष की डाली तुरन्त पकड ली और घोड़े को अकेला छोड दिया। लेकिन सवार के पीठ पर न होने का ज्ञान होते ही घोड़ा भी वहीं रुक गया / शायद यह सोच कर कि 'मेरे मालिक को छोड कर मै अकेला कैसें जाऊँ ?' घोड़ा भी वटवृक्ष के नीचे ही रुक गया। आगे न बढ़ा। यह देख कर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ और अब राजा को पता चला कि घोड़ा वक्र गतिवाला है। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust