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________________ 60 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र कोई नहीं जानता था। ये पाँच लोग थे - राजा, रानी, उपमाता कपिला, महामंत्री हिंसक और स्वयं राजकुमार कनकध्वज। . राजा ने नगर में यह बात प्रचारित कर दी थी कि राजकुमार का रूपसौंदर्य ऐसा अद्भुत और अद्वितीय है कि उसको किसी की बुरी नजर न लग जाए, इसलिए उसे राजमहल से बाहर नहीं निकाला जाता है। मनुष्य को एक झूठ छिपाने के लिए कितने और नए-नए झुठ बोलने पडते है। यह प्रपंच-माया-ही सभी पापों का मूल है ' लेकिन एक-न-एक दिन प्रपंच-झूठ की पोल खुले बिना नहीं रहती है / जब तक पुण्य का पीठबल होता है, तब तक ही प्रपंच गुप्त रह सकता है / लेकिन जैसे ही पुण्ण का पीठबल समाप्त होता है वैसे ही प्रपंच जगत के समाने प्रकट हुए बिना नहीं रहता है। . हे आभानरेशजी, मैं लोगों के सामने कहता, जब राजकुमार बड़ा हो जाएगा, तब वह राजमहल के बाहर निकलेगा और आप सब लोगों को देखने को मिल जाएगा। मेरी इस बात पर विश्वास करके नागरिक राजा के भाग्य की प्रशंसा करने लगे। कहने लगे, जिसे देखने में सूरज भी शक्तिमान् नहीं है, तो फिर हम कौन होते हैं ? हमारे महाराज धन्य-धन्य हैं कि उनको ऐसा अद्भूत रूपगुण-सौंदर्य-सौभाग्य आदि से युक्त पुत्र मिला। 'राजकुमार कनकध्वज चिरंजीवी हो' यह आशीर्वाद देकर लोग चले जाते थे। 'जब हमारा पुण्योदय होगा तभी हमें राजकुमार के | दर्शन होंगे' यह समझ कर संतोष मान कर लोग शांति से अपने काम में लग जाते थे। कनकध्वज राजकुमार के अद्भूत गुण और और रुपसौंदर्य आदि की बात धीरे-धीरे = फैलती हुई विदेशों तक पहुँची। लेकिन इस बात के रहस्य का किसीको कैसे पता चलता ? _ ऐसे ही एक बार सिंहलपुरी के कई व्यापारी व्यापार के उद्देश्य से विमलापुरी में आए। = विमलापुरी के राजा मकरध्वज से मिलने के लिए वे राजसभा में गए / राजा ने विदेशी व्यापारियों का उचित रीति से स्वागत किया और उन्हें बैठने के लिए आसन दिए / राजा ने व्यापारियों से उनका क्षेमकुशल पुछा / उस समय राजकुमारी प्रेमलालच्छी अपने पिता के पास ही बैठी हुई थी। राजकुमारी प्रेमलालच्छी का अद्भूत रूपलावण्य और चतुराई आदि देख कर वे सब व्यापारी अत्यंत आश्चर्यचकित हुए। कनकर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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