________________ 58 न श्री चन्द्रराजति - बिना मेरा हार मेरी सौत को दे दिया। यह जान कर मेरे हृदय में क्रोध की आग भड़क---- दोनों सोते इस बात को लेकर आपस में झगड़ रही थी कि हमारे पतिदेव आ पहुँचे -.-: हमारे झगड़े में अपने को अधिक प्रिय होनेवाली मेरी सौत का पक्ष ले लिया। इससे :: नाराज हो गई। ... जब में नाराज थी, उसी समय तूने मेरी आराधना कर मुझे आकर्षित कर लेने= किया। इसलिए मुझे चिंतातुर हृदय से यहाँ आना पड़ा। जिस समय मैंने तुझे वरदान .. समय मेरा चित्त ठिकाने पर नहीं था। इसलिए मुझ से कोढ़ी पुत्र का वरदान दे दिय= - अचानक मेरे मुंह से जो वचन एक बार निकल गया, उसमें अब हेरफेर नहीं हो सकता के भाग्य में जो लिखा हुआ होता है, उसी के अनुसार देवताओं के मुँह से अनायास वै- - निकल जाते हैं। मनुष्य ने अपने पूर्वजन्म में जैसा शुभ या अशुभ कर्म किया हो, उसके : -----: विफल करने में देव भी सफल नहीं हो सकते हैं। इसलिए हे राजन्, मन में व्यर्थ ही हि - . करो। चतुर और विवेकी मनुष्य कर्म के उदय होने पर व्यर्थ चिंता नही करता है / बलि ___- से नए कर्म का बंधन बाँधते समय बहुत सावधान बन जाता है। कवि ने कहा ही है कि : : 'कर्म बंधन कराते समय सावधान होइए, कर्मोदय पर संतप्त होने से क्या - यह कह कर देवी वहाँ से अंतर्धान हो गई। राजा ने मन में सोचा, नि:संतान होने - पुत्र का होना कई गुना उचित हैं। ... - हिंसक मंत्री ने चंद्र राजा को आगे बताया, 'हे आभानरेश, देवी की आराधन वरदान प्राप्ति के बाद राजा मेरे पास आए और उन्होंने वरप्राप्ति तक का सारा समाच कह सुनाया / मैंने राजा से सारा वृत्तांत सुनने के बाद राजा को आश्वस्त करते हुए "महाराज, पहले पुत्र तो पा लीजिए। यदि वह सचमुच कोढी उत्पन्न होगा, तो उसके का उपाय बाद में करेंगे।। - मेरी बात से राजा-रानी दोनों के मन को शांति मिली। उसी रात रानी कनकवता धारण किया। राजा ने रानी के निवास का प्रबंध एक गुप्त स्थान पर किया। इससे किसी पता ही नहीं चला कि रानी गर्भवती है। नौ महीने पूरे होने पर रानी कनकवती ने सूखपूर्व कोढ़ी पुत्र को जन्म दिया। देवी के वरदान के अनुसार पुत्रजन्म का अवसर आया और खुश हुआ। उसने पुत्रजन्म की खुशाली में एक महोत्सव भी किया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust