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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 57 देनेवाली हो, दु:ख हरण करनेवाली हो और सबकी आशाओं को पूर्ति करनेवालो हो / हे माता, मुझे पुत्र का दान दो। पुत्रप्राप्ति के लिए ही मैं ने तुम्हारी आराधना की है। इसलिए पुत्रप्राप्ति के लिए मेरी प्रार्थना अवश्य स्वीकार करो. हे माता, यदि तुम इस सेवक पर प्रसन्न हुई हो तो मुझे पुत्ररत्न दे दो। मुझे और कोई चीज नहीं चाहिए। रानी के अत्यंत आग्रह के कारण मैंने तुम्हारी आराधना की है / हे माता, मुझे पूरा विश्वास है कि तुम मेरी रानी की आशा अवश्य पूरी करोगी।" राजा की बातें सुन कर, कुलदेवी ने प्रसन्न होकर कहा, “हे राजन्, तेरे पुण्य के बलपर तेरा मनोरथ पूर्ण होगा। तुझे जल्द ही पुत्र की प्राप्ति होगी, लेकिन तेरा पुत्र कोढ़ी होगा।" . - कुलदेवी की बात सुन कर राजा ने हाथ जोड़ कर कुलदेवी से कहा, "हे पालक माता, यदि तुम मुझ पर प्रसन्न होकर पुत्र देने को तैयार हुई हो, तो मुझे जगत् में निंदा का पात्र होनेवाला कोढ़ी पुत्र क्यों देती हो ? यदि देना ही हो, तो सुलक्षणों से युक्त निर्दोष पुत्र दे दो।" इसपर कुलदेवी ने कहा, “हे राजन्, तू चतुर होकर मूर्ख जैसा आचरण क्यों करता है ? इस संसार में जो मनुष्य जैसा काम करता है, उसको अपने कर्म के अनुसार फल भोगना ही पड़ता है। शास्त्रों में कहा गया है - 'अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्।' किए हुए कर्म का फल अवश्य भोगना पडता है। चाहे कोई जिनेश्वर हो चाहे चक्रवर्ति, चाहे कामदेव हो चाहे वासुदेव - इन सबको भी जब किए हुए कर्म का फल अवश्य भोगना पड़ता है, तो फिर सामान्य मनुष्य की बात ही क्या है ? जो सत्कर्म करता है उसे सुखोपभोग मिलता है, लेकिन पुण्य का क्षय होते ही सुख का भी क्षय हो जाता है। पुण्य का उदय होने पर संपत्ति, यश, कीर्ति, विजय प्राप्त होते हैं, लेकिन पुण्य का क्षय होने पर वे सब के सब नष्ट हो जाते हैं। इसलिए मैं ने तुझे तेरे कर्म के अनुसार वरदान दिया है। उसमें हेरफरे होना संभव नहीं है।" कुलदेवी की बात सुनकर राजा ने कहा, “हे माताजी, जैसी तुम्हारी इच्छा हो वैसा करो। लेकिन मुझे यह कारण तो बता दो कि तुम मुझे कोढ़ी पुत्र क्यों दे रही हो ?' ___राजा के प्रश्न पर देवी ने कहा, “अवश्य, मुझे यह कारण बताने में कोई संकोच नहीं है। हे राजन्, मेरे महद्दिक नाम के पति हैं। उसकी दो पत्नियाँ-देवियाँ हैं। हम दोनों हिलमिलकर रहती थीं और सुखपूर्वक अपना समय व्यतीत करती थी। एक बार मेरे पति ने मुझ को बताए P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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