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________________ 54 श्री चन्द्रराजा अभी प्रेलालच्छी का विवाह संपन्न होनेवाला है / हम भी इस विवाह महोत्सव = मिलने से ही उसे देखने के लिए यहाँ आ पहुंचे हैं। फिर राजकुमार कनकध्वज प्रेम साथ विवाह क्यों नही करता है ? यह क्या रहस्य है ? कृपा कर मुझे इसके बारे / कनकध्वज राजकुमार को राजकुमारी प्रेमलालच्छी से विवाह करने में क्या कठिन। यह विवाह करने का भार मुझ पर क्यों लाद रहे है ?'' चंद्र राजा की बात सुन कर इस रहस्य का उद्घाटन करते हुए महामंत्री हिर रूप में कहा, "महाराज, क्या बताएँ ? कुमार कनकध्वज अपने पूर्वजन्म के किसी के उदय से जन्म से ही कोढ़ी हैं। यह बात हमने अभी तक कभी किसी से नहीं कही गुप्त रखी हुई यह बात आपको परदुःखभंजक जान कर आपके सामने ही पहली अब हमारी इज्जत-लज्जा-आबरु सब आपके करकमलों के अधीन है।" समुद्र के मध्य में आया हुआ यह जहाज कहीं डूब न जाए। हम आप से हा प्रार्थना करते हैं कि आप इस लड़खडाने वाले-डूबने वाले जहाज के नियामक बनक से बचा लीजिए / महाराज, सिंहलनरेश की लाज रखना अब आपके हाथ में हैं।' ___ मंत्री की बात बीच में ही काट कर चंद्र राजा ने पूछा, “जब राजकुमार कनव से कोढ़ी है, तो आप लोगों ने राजकुमारी प्रमलालच्छी से उसकी सगाई क्यों की लोगों को राजकुमारी प्रेमलालच्छी से कोई शत्रुता थी ? आप कोढ़ी राजकुमार र राजकुमारी से विवाह कराने कैसे आए हैं ? आप लोग जानबूझकर बेचारी राज जीवन बरबाद करने पर क्यों तुले हैं ? आप मुझ से यह धोखा देने का पाप कराने हैं ? क्या आप मेरे सिर पर पाप का बोझ बढ़ाना चाहते हैं ? देखिए ऐसा पापपूर्ण ॐ कभी नहीं होगा और यदि आप लोगों के कहने में आकर, आपके दबाव से, शर्म से प्रेमलालच्छी से हो भी जाए तो फिर राजकुमारी को राजकुमार कनकध्वज को कै सकेगी ? क्या राजकुमारी प्रेमलालच्छी आँखें बंद कर के मुझसे विवाह करेगी ? क्य समय वह मेरे रंग, रूप, सौंदर्य आदि को देख नहीं लेगी ? इसलिए मुझसे तो यह नि का महापाप कदापि नहीं होगा। किसी को विश्वास से रस्सी के सहारे कुएँ में नीचा उपर से रस्सी काट डालना क्या इच्छा है ? मैं ऐसा काम हरगिज़ नहीं करूँगा, नहीं आभानरेश चंद्र को ऐसी कटु लगनेवाली लेकिन सत्य बातें सुनने पर भी स हुए सिंहलनरेश और उसके महामंत्री हिंसक अपनी योजना पर अटल बने रहे। P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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