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________________ 42 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र गुणावली ने मंत्रित छडी अपनी सास के हाथ में दे कर कहा, “माताजी, यह काम तो सफलता पूर्वक पूरा करके पतिदेव की और से नि:शंक बन कर मैं यहाँ आ पहुँची हूँ। लेकिन अब भी मेरे मनको नगरजनों का भय सता रहा है। हम दोनों को रात के समय महल से बाहर निकलते हुए किसी ने देख लिया और यह बात राजा तक पहुँची तो मैं तो मारी जाऊँगी, कहीं की न रहूंगी। इसलिए इस भय के निवारण का कोई उपाय हो, तो आप वह अवश्य बता दीजिए . गुणावली का भय जानकर वीरमती ने उससे कहा, "प्रिय बहू तू बारबार व्यर्थ ही घबरा रही है। मेरा तो सारा जीवन ऐसे ही काम करते करते बीता है अब में ऐसा चमत्कार कर दिखाऊँगी कि उसे जो लोग अपने घरों के बाहर होंगे वे निद्रादेवी के इतने अधीन हो जाएँगे कि वहीं के वहीं निश्चेष्ट होकर गाढी नींद सोने लगेंगे। सुबह होने तक वे निद्रा में से जागेंगे ही नहीं / कोई इन सोए हुए लोगों के पास ढोल बजाए, तो भो वे अपनी आँखें खोल नहीं सकेंगे।" वीरमती के मुँह से ये बातें सुन कर चंद्र राजा एकदम घबरा-सा गया। लेकिन क्षणिक घबराहट के बाद उसने सोचा, “अरे, मैं तो महल के अंदर खड़ा हूँ। मैं कहीं घर के बाहर रास्ते पर नहीं हूँ। इसलिए मुझ पर मेरी माता की विद्या का असर नहीं होगा। . वीरमती ने अपनी विद्या के प्रयोग से गधी का रूप धारण कर लिया / गधी के रूप में आने पर उसने ऐसी भयंकर आवाज निकाली वह ऐसे रेंकी कि अपने-अपने घरों से बाहर रास्ते पर होनेवाले सभी नगरजन तुरन्त निश्चेष्ट होकर निद्रादेवी के अधीन हो गए। आभापुरी के नगरजनों को रास्तों पर ही अवस्वापिनी निद्रा से मूर्च्छित कर वीरमती गुणावली को साथ लेकर महल से बाहर निकली और नगर के रास्ते पर से होती हुई तेजी से नगर के बाहर स्थित उद्यान में आ पहुंची। वीरमती और गुणावली के पीछे-पीछे चंद्र राजा भी अंधेरे में हाथ में तलवार लेकर, उन दोनों की नजरों से बचता हुआ और छिप-छिप कर चलता हुआ नगर के बाहर वाले उद्यान में आ गया। वह वहाँ एक पेड़ की ओट में छिप कर सास-बहू की अब आगे क्या कार्रवाई चलती है, यह देखने लगा। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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