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________________ 40 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र गुणावली किसी दुःशीला स्त्री की तरह वर्तन क्यों कर रही है ? ऐसा लगता है कि वह किसी कं कुसंगति में फँसी हुई है / कुसंगति में पड़ कर कौन भ्रष्ट नहीं होता हैं ? दुर्बुद्धि से मनुष्य बुर बर्ताव करता है और बुरे बर्ताव से मनुष्य दुःख का भाजन बन जाता है। ऐसा जान पड़ता है कि रानी गुणावली किसी के प्रेमजाल में फंस गई है / अगर ऐसा न होता, तो क्या उसका ऐस बर्ताव होता ? उसकी अति चंचलता से लगता है कि वह कहीं जाने के लिए उतावली हो गई गुणावली की लीलाएँ देखने के उद्देश्य से राजा बनावटी निद्रा की मुद्रा में सो गया। राजा का निद्रा का दिखावा ऐसा सही था कि गुणावली समझ गई कि राजा गाढी नींद सो रहा है। मौका पाकर गुणावली ने इधर-उधर द्रष्टि दौड़ाई और कोई देख नहीं रहा है, इस बात का विश्वास होने पर वह राजा की शय्या के निकट से उठी। धीरे से उसने महल का दरवाजा खोला और वह बाहर निकल आई। गुणावली के बाहर निकल जाने का विश्वास होते ही राजा शय्या पर से उठा और हाथ में तलवार लेकर रात के अंधेरे में गुणावली का पीछा करने लगा। अंधेरे के कारण गुणावली मन में निर्भय थी। वह मन में समझ रही थी कि मेरी कोई बात राजा समझ भी नहीं पाया है। इधर राजमाता वीरमती बहुत देर से गुणवली की प्रतीक्षा कर रही थी। अचानक दूर से गुणावली को अपनी ओर आते देख कर उसका मन हर्ष से नाच उठा। अपनी विद्या के गर्व से उसकी छाती फल गई, उसका मन अभिमान से भर गया। गुणावली वीरमती के पास आई और उसने वीरमती से कहा, “माताजी, आपने तो बहुत बड़ा चमत्कार कर दिखाया है। मैं आपकी आज्ञा के अनुसार मेरे पतिदेव को सुला कर आपके पास आ गई हूँ। अब जो करना हो, खुशी से कीजिए। लेकिन पतिदेव के जागने से पहले हम लौट आएँ, ऐसी सावधानी रखिए। इससे उनकी समझ में हमारी यह ‘यात्रा' नहीं आ पाएगी।" . इधर वीरमली के महल के एक कोने में गुप्त रीति से खड़ा हुआ राजाचंद्र सास और बहु के बीच चल रहा यह गुप्त वार्तालाप बड़े ध्यान से सुन रहा था। वीरमती ने गुणावली को समझाया, "प्रिय बहु, तू महल के पीछे होनेवाले उद्यान में से कनेर के पेड की एक छोटी पताली छड़ी ले आ। मैं तुझे वह छड़ी उस पर मंत्र डाल कर दे P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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