________________ 37 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र देशांतर की नई-नई चीजें देखने की इच्छा है न ? तो आज मैं उसके लिए तैयारी कर लेती हूँ। देख, यहाँ से 1800 योजन की दूरी पर विमलापुरी नाम की नगरी है। वहाँ मकरध्वज नाम का महान् पराक्रमी राजा राज्य करता है / इस राजा की प्रेमलालच्छी नाम की परम लावण्यवती इकलौती कन्या है / यह कन्या अपनी सुंदरता में स्वर्ग की सुंदर अप्सराओं को भी मात देती है . / इस सुंदरी प्रेमलालच्छी का विवाह आज रात रिहलपुर नगर के राजा के पुत्र कनकध्वज के साथ संपन्न होनेवाला है। यह विवाह महोत्सव बहुत ही देखनेयोग्य है / आज रात को हम दोनों आकाशगामिनी विद्या की सहायता से इस विमलापुरी में यह अपूर्व विवाह-महोत्सव देखने जाएँगी। इसके लिए अब तू तैयारी कर ले।"वीरमती की नमकमिर्च लगा कर कही हुई बातें सुन कर गुणावली के मन में यह विवाह महोत्सव देखने की लालसा बहुत प्रबल हो उठी, उसने प्रसन्नता से वीरमती से कहा, “सचमुच माताजी, आपके गुणों का कोई पार नहीं है / आपकी शक्ति अद्वितीय है, अलौकिक है, दिव्य है ! आप जैसी सास तो उसी को मिल सकती है, जिसने अपने पूर्वजन्म में बहुत बड़ा पुण्य संचय किया हो / मेरा महान् भाग्य है कि मुझे आप जैसी साक्षात् वात्सल्यमूर्ति और मातातुल्य सास मिली है। आपने विमलापुरी के जिस विवाहमहोत्सव को देखने की बात कही है, उसके लिए आपके साथ आने को मैं बिलकुल तैयार हूँ। मेरे मन की यह प्रबल लालसा पूर्ण करने में आप कल्पवृक्ष के समान हैं। लेकिन मेरे मन में एक बात का संदेह है कि मैं आज रात को राजमहल में से निकल कर आपके साथ विमलापुरी किस तरह आऊँ ? आपके पुत्र और मेरे पति राजा इस समय राजसभा में चले गए हैं। संध्यासमय तक वे राजसभा में ही रहेंगे। संध्यासमय तक अपने कार्य पूरे करके वे एक प्रहर रात बीत जाने के बाद मेरे महल में पधारेंगे। फिर एकाध प्रहर तक मेरे साथ हँसी-विनोद करके आधी रात के समय वे सो जाएँगे। आधी रात के बाद एक प्रहर तक सोकर फिर रात के आखिरी प्रहर में तो वे जाग जाते हैं / इसलिए मुझे तो रात के समय महल से बाहर निकलने का अवसर ही नहीं मिल पाएगा। इसलिए मैं रात को आपके साथ कब और किस तरह आऊँ इसके बारे में आप ही मुझे बताइए।" गुणावली ने जब अपनी सास वीरमती को अपने मन की यह व्यथा कह सुनाई, तो वीरमती बोली, “बहू, तू इसके बारे में बिलकुल चिंता मत कर / जैसा मैं कहूँ, वैसा कर / अब P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust