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________________ 258 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र का आनंद जैसे समाप्त-सा हो गया था। लेकिन मस्तिष्क के संतुलन को बनाए रखकर वह दोनों पत्नियों से समभाव से बर्ताव करता था। लेकिन पति के समभाव के बर्ताव का दोनों सखियों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं हुआ। दोनों के बीच दिन-ब-दिन कलह बढ़ता ही गया। ____ इधर तिलकपुरी में तिलमंजरी के पिता राजा मदनभ्रम को किसी शिकारी ने परद्वीप से लाई हुई एक सारिका उपहार के रुप में अर्पित की। यह सारिका बड़ी ही चतुर थी और बुद्धिमान् भी, क्योंकि वह एक बार सुना हुआ कोई काव्य, कथा, श्लोक, पहेली आदि को बराबर याद रख लेती थी। फिर कभी वह भूलती नहीं थी। फिर उसने सुनकर जो याद किया हो, उसे वह दूसरों को बराबर उसी रुप में सुनाती और इस प्रकार लोगों का चित्तमनोरंजन करती थी। - राजा मदनभ्रम ने इस सारिका को सोने के पिंजड़े में रखा और पिंजड़े के साथ वह सारिका वैराट देश में अपनी पुत्री तिलकमंजरी के पास उसके मनोरंजन के लिए भेंट के रुप में भेज दी। राजसेवक जब इस सारिका के पिंजडे को लेकर वैराट देश में तिलकमंजरी के पास आया, तो तिलकमंजरी बहुत खुश हो गई / उनके सेवक के साथ पिता को कृतज्ञतासंदेश .. भेजा। अब तिलकमंजरी ने इस सारिका की देखभाल के लिए एक सेवक नियुक्त कर दिया। अब तिलकमंजरी उस सारिका के साथ क्रीड़ा करती, उसे नित्य नई-नई चीजें खिलाती, उसकी कोयल जैसी मधुर वाणी सुनती / यही तिलकमंजरी का अब प्रतिदिन का कार्यक्रम हो गया। सारिका के प्रति मन में होनेवाले अत्याधीक प्रेम के कारण तिलकमंजरी सारिका का पिंजड़ा हरदम अपने पास रखती। वह अपनी सखी और सौत रुपवती को उस सारिका को कभी स्पर्श भी न करने देती थी। कभी-कभी रुपवती के मन में सारिका को कोयल जैसी मधुर वाणी सुनने को इच्छा होती और वह तिलकमंजरी के पास उस सारिका को कुछ समय तक के लिए उसे देने की याचना करती। लेकिन इस पर तिलकमंजरी उसे स्पष्ट शब्दों में सुनाती -'' यह सारिका मेरे पिता ने. मेरे लिए ही भेजी है। मैं तुझे वह सारिका क्रीड़ा करने के लिए क्यों दूँ ? तू अपने पिता को क्यों नहीं लिखती कि वे तेरे लिए भी ऐसी ही एक दूसरी सारिका भेज दे। क्या तुझे ऐसा लिखने में शर्म आती है ?" जहाँ प्रेम टूट जाता है, वहाँ अपनी प्रिय वस्तु दूसरे को देने को मन नहीं होता है। इसके स्थान पर इन्कार करने की इच्छा होती है। जिसके प्रति मन में नाराजी होती है, उसे कोई चीज P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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