________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 257 अब अपने को सौंपे हुए काम को सफलतापूर्वक पूरा करके जितशत्रु राजा का मंत्री मदनभ्रम राजा से विदा लेकर फिर से वैराट देश लौटा / उसने राजा को सारा समाचार कह सुनाया। राजा जितशत्रु समाचार सुनकर बहुत खुश हो गया। शूरसेन को यह बात मालूम होने पर उसने भी खुशी प्रकट की। विवाह का शुभ मुहूर्त निकट आने पर वैराटनरेश जितशत्रु अपने पुत्र शूरसेन तथा से शूरसेन का राजपुत्री तिलकमंजरी और मंत्रीपुत्री रूपवती के साथ विवाह संपन्न हुआ। विवाह के उपलक्ष्य में राजा मदनभ्रम तथा मंत्री दोनों ने अपने दामाद शूरसेन को सहर्ष अनेक हाथी, घोड़े, रथ, सेवक-सेविकाएँ, उत्तम वस्त्र, आभूषण उपहाररूप में देकर उसका सम्मान किया। कुछ दिन ससुरों का आदरातिथ्य स्वीकार कर शूरसेन अपनी दोनों नववधूओं के साथ अपने वैराट देश को लौट गया। अब वैराट देश में कुमार शूरसेन अपनी दोनों नववधूओं-तिलकमंजरी और रूपवतीके साथ भोग-विलास में अपनी समय सुखपूर्वक व्यतीत करने लगा। दोनों सखियाँ-तिलकमंजरी और रूपवती अपने पतिदेव की सच्चे अंत:करण से सेवा करती थीं। दोनों के बीच एक दूसरे के प्रति प्रेमभाव पूर्ववत् बना रहा, लेकिन अवज्ञा से टूटे हुए प्रेमभाव को कौन जोडने में समर्थ हो सकता है ? एक बार भंग हुआ प्रेम फिर जोड़ा नहीं जा सकता हैं। इन दोनों के बीच धर्म की बात को लेकर तो पहले से हो गहरा मतभेद था। अब ये दोनों सोतें बन गई थीं। इसलिए अब सौतिया डाह और उसके कारण आपसी झगड़े की भी शुरुआत हो गई / जब एक ही अच्छी वस्तु को पाने की अभिलाषा अनेकों के मन में एक साथ उत्पन्न होती है, तब उनमें एक दूसरे के प्रति शत्रुता उत्पन्न हुए बिना नहीं रह सकती। जहाँ लोभ होता है और स्वार्थ भी होता हैं, वहाँ प्रेम का संबंध लम्बे समय तक नहीं टिक सकता है। जब एक बार दो व्यक्तियों के बीज बीजारोपण होकर शत्रुता अंकुरित हो जाती है, तब वह शत्रुता धीरे धीरे बढ़ती ही जाती है / यहाँ भी इन दो सखियों के बीच शत्रुता का बीज तो पहले ही बोया हुआ था। वह बीज अब अंकुरित हुआ और उसमें पत्र, पुण्प और फल आने लगे। मन में शत्रुता की बढती हुई भावना होने पर भी दोनों सखियाँ बाहर के लोगों के सामने प्रकट रूप में एक दूसरे को बहनकह कर पुकारती थीं। दोनों पत्नियों के बीच चल रहे अंतर्गत विवाद और झगड़े के कारण राजकुमार शूरसेन भी मन में बहुत दु:खी था। उसके अपने जीवन P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust