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________________ 254 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र तुझे मेरी बात में विश्वास नहीं होता हैं, तो तू उसकी झोली और पात्र आदि को देख कर खोज सकती हैं। उसे मंत्रीपुत्री के उस आभूषण से क्या लेना-देना है ?" साध्वी की बात सुन कर राजकुमारी ने क्रोध में आकर कहा, “अरी, झोली आदि देख कर क्या करना है ? तुम सीधी तरह से वह चुराया हुआ आभूषण मुझे लौटा दो।" साध्वीजी को राजकुमारी के छलकपट की कोई जानकारी नहीं थी। इसलिए वह आभूषण कहाँ से निकाल कर दे सकती थी ? इसलिए राजपुत्री ने साध्वी के लटकनेवाले हिस्से में बंधा हुआ वह कर्णफूल निकाल लिया और मंत्रीपुत्री के हाथ में सौंप दिया। फिर वह मंत्रीपुत्री को समझाते हुए बोली, “देखी न तुम्हारी साध्वीजी की साधुता ? इसलिए मैं तुझे बार बार समझाती हूँ कि ऐसी पाखंडी साध्वियों की संगति में मत रह / उनका उपदेश मत सुन / उन्हें अपने घर में भोजनपानी लेने के लिए मत आने दे।" . राजपुत्री के सारे बर्ताव और बातचीत के ढंग से मंत्रीपुत्री को पूरा विश्वास हो गया कि यह सारा प्रपंच जानबूझ कर साध्वियों को समाज में बदनाम करने के लिए और मेरी उन पर से श्रद्धा उठ जाए इसीलिए किया हुआ है। इसलिए मंत्रीपुत्री राजपुत्री की शर्म और प्रभाव की परवाह किए बिना क्रुद्ध होकर कहा, "तिलकमंजरी, मुझे पक्का विश्वास है कि यह सारा छलकपट तूने ही किया है। साध्वीजी तो बिलकुल निरपराध हैं / तूने ही उनको बदनाम करने के लिए गुप्त रीति से और उनकी नजर बचा कर उनके वस्त्र के लटकते हुए कोने में थाल में से मेरा कर्णफूल लेकर बाँध दिया है। यह षड्यंत्र निश्चय ही तेरा ही है। ऐसा चोरी का काम ये साध्वीजी प्राणों पर संकट आने पर भी नहीं कर सकती है। यह सारी तेरी करतूत है, तेरा ही रचा हुआ षड्यंत्र है।" फिर रूपवती ने साध्वीजी को आश्वस्त करते हुए कहा, 'हे पूज्य साध्वीजी साहब, आप इस बात का बिलकुल बुरा मत मानिए / आप तो बिलकुल निरपराध हैं / मेरी इस महामिथ्यात्वी सखी ने ही जैनधर्म के प्रति मन में बचपन से ही द्वेषभाव होने से यह सारा षड्यंत्र रच कर साध्वीजी पर चोरी का झूठा इल्जाम लगा कर उन्हें बदनाम करने की असफल कोशिश की है / आप बिलकुल चिंता मत कीजिए / मैं सब कुछ सँभाल लूंगी।" इस प्रकार श्रद्धा और प्रेम के साथ साध्वीजी को सांत्वना देकर रूपवती राजपुत्री के साथ अपने निवासस्थान की ओर लौट आई / राजपुत्री के मन की सारी अभिलाषओं को रूपवती ने मिट्टी में मिला दिया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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