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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 253 मंत्रीपुत्री ने मुख्य साध्वीजी को वंदना की / साध्वीजी ने मंत्रीपुत्री को 'धर्मलाभ' का आशीर्वाद देकर कहा, "हे बहनो, तुम थोड़ी देर के लिए बाहर बैठो। अभी हमें आहारपानी ग्रहण कर लेना है। आज हमें आहारपानी लाने में थोड़ी देर ही हुई / तुम्हारे मन में धर्मोप्रदेश सुनने की इच्छा हो, तो अभी आहरपानी ग्रहण करके आकर तुम्हें धर्म की बात सुनाऊँगी। ठीक है?" | विवेकी और धर्मप्रिय रूपवती ने मुख्य साध्वीजी की बात स्वीकार कर ली और वह ! तुरन्त बाहर आ गई। उसे बाहर आए हुए देखकर राजपुत्री ने उससे कहा, "हे सखी, तू बाहर क्यों आई? इसपर मंत्रीपुत्री ने राजपुत्री को बताया, “हे सखी, इस समय साध्वीजी महाराज आहारपानी / ग्रहण कर रही हैं। इसलिए उनके कहने से मैं बाहर आई हूँ।" साध्वीजी महाराजों के आहारपानी लेने के बाद मुख्य साध्वीजी ने उन दोनों को इशारे से उपाश्रय में बुलाया। दोनों सखियाँ अंदर चली आई। लेकिन अंदर जाते ही राजपुत्री ने एकदम मुख्य साध्वी महाराज से कहा, "हे साध्वी ! तुम श्रावकों के घरों में आहारपानी लाने जाती हो और क्या साथ-साथ चोरियाँ भी करती हो ? यह तुम्हें किसने सिखाया है ? आज तुम्हारे समूह की एक साध्वीजी मेरी इस सखी के घर आहारपानी लेने आई थी। उस समय मेरी यह सखी तुम्हारी साध्वीजी के लिए घी लाने घर के भीतर गई / इसी समय तुम्हारी उस साध्वी ने निकट ही थाल में पड़ा हुआ मोती का कर्णफूल उठा लिया हैं / मैंने यह बात उसी समय अपनी इन दो आँखों से देखी थी। लेकिन मेरी इस सखी को यह बता दिया जाए तो उसे बुरा लगेगा, यह सोच कर मैं उस समय कुछ न बोली। लेकिन उसने मुझ पर ही कर्णफूल लेने का इल्जाम लगाया। इसलिए अब सत्य बात कहे बिना मेरे सामने कोई उपाय नहीं रहा। इसलिए साध्वीजी, आप अपने समूह की उन साध्वीजी से लेकर वह कर्णफूल मेरी सखी को चुपचाप वापस दे दो। अगर तुमने चुपचाप वह कर्णफूल लौटा दिया तो मैं इस घटना के बारे में किसीसे कुछ नहीं कहूँगी। लेकिन अगर तुम यह कर्णफूल नहीं लौटाओगी, तो मैं सारे नगर में ढिंढोरा पीट कर सब पर यह बात प्रकट कर दूंगी कि तुम्हारे समूह की साध्वियाँ आहारपानी लेने जा कर श्रावकों के घरों में मूल्यवान् वस्तुओं की चोरियाँ भी करती हैं।" राजकुमारी के मुँह से अपने समूह की साध्वी के प्रति लगाया गया चोरी का आरोप सुन कर मुख्य साध्वीजी एकदम क्षुब्ध होकर बोली, “हे राजकुमारी, तू राजकुमारी होकर ऐसा असत्य क्यों बोल रही है ? हमारे समूह की साध्वी ने मंत्रीपुत्री का कर्णफूल नहीं लिया है। यदि P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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