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________________ 229 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र कर दीजिए। ऐसा करने से जगत् में आपकी प्रतिष्ठा में भी वृद्धि होगी। लोग कहेंगे कि इस राजा ने एक निराधार स्त्री का उद्धार किया। हे राजन्, यदि आप सच्चे क्षत्रिय राजा होंगे, तो मेरी इस प्रार्थना को अस्वीकार नहीं करेंगे। अच्छा क्षत्रिय शरणागत को कभी शरण दिए बिना नहीं रहता है। वह उसे कभी तिलमिलाने नहीं देता है, उसका दु:ख दूर किए बिना नहीं रहता है। दूसरी बात यह है कि हे। राजन्, प्रार्थनाभंग करने का बड़ा प्रायश्चित क्या होता है, वह आप जानते ही होंगे। आप जैसे वीर पुरुष इस संसार में विरले ही होते हैं, जो पराये व्यक्ति द्वारा की हुई प्रार्थना को कभी अस्वीकार नहीं करते है। हे राजन्, तुम्हारा आकार और इंगित देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि आप सच्चे क्षत्रिय राजा है। इसलिए मैंने अत्यंत आशा और विश्वास रखकर आपसे यह एक तुच्छ-सी प्रार्थना की है। उसे अस्वीकार न कीजिए।" उस नकली विद्याधर स्त्री की बात सुनकर चंद्र राजा ने कहा, “हे दुष्ट स्त्री, तू मुझसे ऐसी निंद्य प्रार्थना क्यों कर रही है ? ऐसी अधमनीच ढंग की प्रार्थना करते समय तुझे बिलकुल लज्जा नहीं आती है ? क्या तुझे यह मालूम नहीं है कि सच्चा सदाचारी वीर क्षत्रिय पुरुष कभी स्त्रीलंपट नहीं होता है / परपुरुष की इच्छा करनेवाली स्त्री का मुंह देखना भी महापाप है। . इसलिए तुझे ऐसी अनुचित प्रार्थना मुझसे बिलकुल नहीं करनी चाहिए। हे स्त्री, यदि तू चाहे तो मैं तेरे पति को पाताल में से भी खोज निकाल कर तेरे पास ले आऊँगा। लेकिन यह पत्थर की लकीर मान ले कि मैं तेरी इस कुप्रार्थना को स्वीकार नहीं कर सकता, न करूँगा। उत्तम कुल में जन्म लेनेवाला पुरुष परस्त्रीसंग नहीं कर सकता है, ऐसा अनुचित काम तो अकुलीन मनुष्य ही कर सकता है। उत्तम कुल में जन्म लेनेवाला पुरुष प्राणांतिक संकट आने पर भी कभी पापाचरण में प्रवृत्त नहीं हो सकता है। वास्तव में परस्त्रीगमन तो इस लोक और परलोक में मनुष्य दुर्गति का कारण है / परस्त्रीगमन करनेवाले पुरुष को इस लोक में अपयश का और मृत्यु के बाद दुर्गति का सामना करना ही पड़ता है। सद्गति से भ्रष्ट करनेवाला और दुर्गति में ढकेल देनेवाला कार्य उत्तम पुरुष कभी नहीं करता है।" ___ चंद्र राजा की तर्कसंगत धर्मवाणी सुन कर कृत्रिम क्रोध दिखाते हुए विद्याधरी ने कहा, “हे राजन्, यदि आप मेरी प्रार्थना स्वीकार नहीं करेंगे तो मैं आपको सच्चा क्षत्रिय नहीं मानूंगी। निराशहताश हुई मैं आत्महत्या करूँगी, वह स्त्रीहत्या का पाप आपके सिर पर चढेगा। इसलिए P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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