________________ 228 .. श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र किया। रात के समय किसी स्त्री की रोने की यह ध्वनि चंद्र राजा के कानों में पड़ी। इस रोने की ध्वनि को सुनकर परोपकाररसिक चंद्र राजा का दिल दयार्द्र हो गया। राजा चंद्र मन में सोचने लगा कि इतनी रात गए ऐसे निर्जन स्थान में अत्यंत दीन स्वर में रोनेवाली यह दु:खी और अभागी स्त्री कौन होगी ? राजा तुरंत अपने शयनगृह में से बाहर निकल आया। तुरंत हाथ में तलवार लेकर वह एक सिंह की तरह उस दिशा की ओर चल पड़ा जिस दिशा से स्त्री के रोने की आवाज आ रही थी। थोड़ी देर तक उसी दिशा में चलते रहने के बाद राजा वहाँ आ पहुँचा, जहाँ वह विद्याधरी उद्यान के एक कुंज में बैठकर रो रही थी। उस स्त्री का रूप प्रेम और सौंदर्य के देवता कामदेव की सुंदरी पत्नी रति के समान सुंदर था। उसने अपने शरीर पर अत्यंत मूल्यवान वस्त्रालंकार धारण किए हुए थे। ऐसी युवा स्त्री को ऐसी रात के समय उद्यान में अकेली बैठकर देख राजा का मन आश्चर्यचकित हो गया / इसलिए उसने आश्चर्य प्रकट करते हुए उस रति समान सुंदरी को देखकर कहा, “हे सुंदरी तू ऐसी रात के समय, यहा उद्यान में अकेली बैठकर क्यों रो रही है ? तुम्हें किस बात का दु:ख है ? तू अपने दु:ख के बारे में मुझे नि:संकोच बता दे, जिससे मैं तेरे दुःख को दूर करने की यथाशक्ति कोशिश करूँगा / हे सुंदरी, बता कि तू कौन है ? मैं तेरा दु:ख यथाशक्ति दूर करने का प्रयत्न करूँगा।" चंद्रराजा का यह सहानुभूति पूर्ण वचन सुनकर उस नकली सुंदरी ने अपना नाटक दिखाना प्रारंभ किया। सबसे पहले उसने अपने पर कटाक्षबाण फेंक कर राजा के मन को वासनाविवश बनाने का प्रयत्न किया। फिर वह प्रेमगर्भित वचनों में बोली, “हे आभानरेश, मैं एक विद्याधर की पत्नी हूँ। अपने दुःख की कहानी किसी को बताने में मुझे बहुत लज्जा आती है। लेकिन दुःख से विवश होकर मुझे कहना पड़ता है / हे राजन्, मेरी करूण कहानी ध्यानपूर्वक सुनिए। ___ मेरे पति विद्याधर मेरे साथ झगड़ा करके और मुझे यहाँ अकेली छोड़ कर न जाने कहाँ चले गए हैं ? मेरे पति ने जो दुष्कर्म किया है, वह पुरुष को शोभा नहीं देता है / हे राजन्, मैं एक अनाथ अबला हूँ। मेरी समझ में नहीं आता है कि मेरी यह जीवन-नौका दुःखसागर को पार कर किस तरह किनारे लगेगी ? इसी चिंता से आकुलव्याकुल होकर बेचैन बन कर मैं रो रही हूँ। यही मेरे दुःख का मुख्य कारण है। __ मेरे पति विद्याधर मुझे छोड़ कर चले गए लेकिन मेरा महान् सौभाग्य है कि आप अभी यहाँ पधारे हैं। साथ ही आपने मेरा दु:ख दूर करने की इच्छा भी प्रकट की है। इसलिए हे राजन्, मैं आपसे प्रार्थना करती हूं कि आप मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करके मेरा दु:ख दूर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust