________________ 211 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र यथासमय रानी गुणावली का चंद्रराजा के नाम लिखा हुआ पत्र लेकर गुप्त रीति से रवाना हुआ दूत कुछ समय के बाद विमलापुरी पहुँच गया। चंद्र राजा के पास पहुँच कर उसने सारा वृत्तान्त राजा चंद्र को कह सुनाया और फिर गुणावली का लिखकर दिया हुआ पत्र राजा चंद्र को सौंप दिया। चंद्र राजा ने गुणावली का लिखा हुआ पत्र अपनी छाती से लगा लिया और वह अत्यंत आदर से पत्र पढने लगा।पत्र में गुणावली ने लिखा था, 'प्रिय प्राणनाथ ! आपका पत्र मिला ! आपका पत्र पढ़ कर बहुत खुशी हुई। पत्र में आपने मुझे जो उपालंभ दिया है, वह मेरे अपराध के स्वरूप को देखते हुए अत्यंत अल्प हैं। आप मुझे उपालंभ देने के अधिकारी हैं / मुझे आपका उपालंभ चुपचाप सुनना चाहिए। वास्तव में मैं तो दोषों की खदान हूँ। इसलिए मैं बिलकुल दया की पात्र नहीं हूँ। लेकिन आप तो सागर की तरह गंभीर और स्वभाव से ही परोपकारी हैं। जैसे बादल बरस कर सरोवरों और तालाबों को पानी से भर देते हैं, फिर भी बदले में कुछ भी पाने को इच्छा नहीं रखते हैं, जैसे आम्रवृक्ष उस पर पत्थर फेंकनेवाले को मीठा फल ही देता हैं, जैसे चंदन का पेड उसे काटनेवाले को भी सुगंध ही प्रदान करना हैं, जैसे गन्ने को कोल्हू मे डाल कर पेरने पर भी वह मधुर रस ही देता है, बिलकुल वैसे ही आपने मेरे दुर्गुणों को अनदेखा कर अपनी सुजनता का ही परिचय दिया हैं। ऐसा करना आप जैसे महापुरुषों के लिए उचित ही है। वास्तव में मेरा अपराध अक्षम्य हैं। मैंने अपनी सास की बातों में आकर आपके साथ प्रवंचना की है। मैंने अपनी ही करतूत से अपने लिए दु:ख खड़ा कर दिया था। इसके लिए मैं सचमुच पश्चात्तापदग्ध हो गई हूँ। F कभी-कभी ऐसा होता हैं कि मनुष्य के पुण्य का बल पतला-मंद पड जाने से उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। ऐसा ही मेरे बारे में भी हुआ हैं / मैं सास की बात मान कर कौतुक देखने गई। इससे आपको और मुझे भी काफी परेशानी सहनी पड़ी है / इसके लिए मुझे बहुत पश्चाताप होता हैं। लेकिन अब पछताए क्या होत, जब चिडिया चुग गई खेत ? = यदि मैंने आपके विवाह की बात अपनी सास से न कही होती, तो जो अनर्थ हुआ, वह न होता, बिलकुल न होता / मुझे अपने कुकुत्य का पूरा फल मिल गया / अपनी ओर से हुई इस बहुत बड़ी गलती केलिए मुझे बहुत दु:ख होता है। लेकिन अपने इस दु:ख को किसके सामने कहूँ ? पश्चात्ताप करने पर भी बिंगडी हुई बाजी थोडे ही सुधरती है ? पानी पीने के बात घर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust