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________________ . 210 , . श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र का भला है। प्रेमपात्र का अपराध हरदम क्षम्य ही होता है। दूसरी बात यह है कि मैं मानता हूँ कि किए हुए अपराध के लिए तेरे मन में बहुत पश्चाताप हुआ होगा। पश्चाताप ही मनुष्य से हुई भूल के लिए पर्याप्त प्रायश्चित हैं / इसलिए मैं तेरे अपराध के लिए तुझे क्षमा करता हूँ। मेरी आँखें तुझे यथाशीघ्र देखने के लिए लालायित हैं / यहाँ तक कि मेरा शरीर, मन और प्राण भी तेरे पास ही हैं। इसी समय तुझसे मिलने की प्रबल इच्छा हो रही है, लेकिन क्या करूँ ? इतने सारे वर्ष मैंने अत्यंत कष्ट में बिताए हैं। अब देखना हैं कि भाग्य तेरा-मेरा संगम कब करा देता है ? सेवक के साथ पत्र का उतर लिख कर भेज दें। इस गुप्त पत्र की बात गलती से भी अपनी सास के पास मत करना। कुछ और पूछना हो तो मेरे भेजे हुए पत्रवाहक से तूनि:संकोच पूछ सकती हैं ! तेरा शुभाकांक्षी, चंद्रकुमार ___ गुणावली ने अपने पति का पत्र पढने के बाद पत्रवाहक से फिर अपने पति का क्षेमकुशल पूछ लिया। पत्रवाहक ने चंद्र राजा ने पत्र में जो लिखा था, वही सारा समाचार गुणावली को सुनाया / यद्यापि पत्र में चंद्रराजा ने गुणावली को भला-बुरा लिखा था, फिर भी इतनी लम्बी अवधि के बाद पति का पत्र पाकर गुणावली फूली न समाई। उसने उसी समय चंद्र राजा के पत्र का प्रत्युतर लिख कर वह पत्रवाहक को सौंप दिया। उसने पत्रवाहक को बड़े सम्मान से लेकिन गुप्त रीति से विदा कर दिया-रवाना कर दिया। लेकिन पूरी तरह से खिले हुए पुष्प को सुगंध जैसे प्रकट हुए बिना नहीं रहती है, वैसे ही राजा चंद्र के गुणावली को लिखे गए पत्र की बात अत्यंत गुप्त रखने की कोशिश करने पर भी गुप्त नहीं रह सकी, प्रकट होकर ही रही। आभापुरी में चारों और यह वार्ता फैली कि राजा चद्र ने मुर्गे के रूप में से मनुष्य का रुप पा लिया हैं।' जैसे जैसे यह वार्ता नगर में फैलती गई, वैसे वैसे आभापुरी की जनता के मन में यही इच्छा बलवती होती गई कि कब हमारे महाराज चंद्र आभापुरी में पधारेंगे और कब हम उनके पावन दर्शन से अपनी आंखों को सार्थक बना लेंगे। सारी आभापुरी में एकमात्र अभागिनी वीरमती ही थी कि उसे यह समाचार सुन कर मन में अत्यंत दु:ख हुआ था। खैर ! P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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