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________________ 197 को चन्द्रराजर्षि चरित्र इधर राजा मकरध्वज ने राजसेवकों को तुरंत सारी विमलापुरी को ध्वजा-पताकाओं से जाने का आदेश दिया / अपनी पुत्री प्रेमलालच्छी का मनचाहा पति सोलह वर्षों के बाद उसे पस मिल गया, इस खुशी में राजा ने बड़ी घूमधाम से अपनी नगरी में जिनेंद्र महोत्सव नाया। इस जिनेंद्र महोत्सव की वार्ता सारे राज्य में फ़ैलते ही राजा के अधीन होनेवाले सारे श में स्थान-स्थान पर जिनेंद्र महोत्सवों का आयोजन किया गया। राज्य में सर्वत्र आनंद का खंड साम्राज्य सा हो गया। सभी लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई। उधर प्रेमलालच्छी को अपने अत्यंत प्रिय और गुणनिधि, रूपनिधि पति की फिर से प्ति होने के कारण उसके शरीर का अंग अंग खुशी से खिल उठा। उसका सौंदर्य वृद्धिगत ता-हुआ सा लगा / धीरे-धीरे प्रेमलालच्छी पिछले सोलह वर्षों के विरहदु:ख को भूल गई / अब वह पति प्राप्ति के आनंद में पूरी तरह डूब गई थी ! लेकिन प्रेमला के पिता राजा मकरध्वज को सोलह वर्ष पहले अपनी इकलौती कन्या के ते किए हुए अन्याय का विचार सताता रहा / राजा पश्चात्तापदग्ध हो गया / अब वह चात्ताप की आग में ऐसा जल रहा था कि उससे रहा न गया। एक बार एकान्त पाकर और बसर देख कर राजा मकरध्वज अपनी कन्या प्रेमला के पास आया। आँखों में आँसू भर कर जा ने अपनी पुत्री से कहा, 'हे प्रिय पुत्री, मैं तेरे पास क्षमायाचना करने के लिए आया हूँ। मैंने लह वर्ष पहले तेरे साथ जो अन्याय किया था, उसके पश्चात्ताप की आग में मैं जल रहा हूँ। , तू मेरी इकलौती बेटी हैं। लेकिन पिछले सोलह वर्षों में मैंने कभी तुझे प्रेम की दृष्टि से aa तक नहीं / जन्म देनेवाला पिता होते हुए भी मैंने तेरे साथ एक कट्टर शत्रु जैसा बर्ताव या। कोढी कनकध्वज के कहने में आकर मैंने तुझे विषकन्या मान लिया और मृत्युदंड की ना भी सुनाई / उस समय मेरे मंत्री की बात यदि मैंने न मानी होती, तो शायद तू कब की मर होती, मुझे हरदम के लिए छोड गई होती ! लेकिन बेटी, उस समय तेरे सद्भाग्य ने ही तेरी की। लेकिन मैं उस समय तेरे प्रति इतना निष्ठूर हो गया था कि मैंने तुझे कोई कष्ट देने में पर नहीं रखी। _ हे बेटी, तू पहले से ही बार-बार मुझे बताती थी कि तेरा विवाह तो आभानरेश राजा के साथ ही हुआ हैं। लेकिन सिंहलद्वीप के उन चालाक लोगों के वाग्जाल में फँस कर मैंने P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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