________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 169 - लेकिन शासनदेवी का दिया हुआ वचन भी कभी मिथ्या नहीं हो सकता। क्योंकि कंहा भी गया है कि 'अमोधं देवभाषितम् !' अर्थात, देवता की कही हुई बात सच ही निकलती है, कभी मिथ्या नहीं हो सकती है। अब तो प्रत्यक्ष रूप में शासनदेवी के दिए हुए वचन की परीक्षा होगी। जब मैं यह विचार करती हूँ कि मेरे प्राणनाथ तो मुझसे सहस्त्र कोस दूरी पर बैठे हैं, तब मरा हृदय निराशा से भर जाता है। लेकिन दूसरी ओर जब मैं शासनदेवी का वचन याद करती चिरकाल का वियोग-दु:ख दूर होना ही चाहिए। __ अब मैं देखू कि क्या होता है ? ईश्वर पर मेरा पूरा विश्वास है।" प्रेमलालच्छी की कही हुई ये सारी बातें सुन कर उसकी सखियों ने उससे कहा, "हे स्वामिनी, तुम्हारी पुण्यराशि तुम्हारे मन को धारण अवश्य पूरी कर देगी . विवाहित कन्या को पिता के घर में भले ही अन्य सभी प्रकार का सुख प्राप्त होता हो, लेकिन वास्तविक सुखशांति देनेवाला तो पति का घर ही होता है। _ हे सखी, तुम्हें तो चंद्रराजा जैसा गुणों का भंडार और कामदेव के समान सुंदर पति मिला है। फिर तुम तो ऐसी सुंदरी हो कि तुम्हें जो एक बार देखेगा, वह तुम्हें कभी भूल नहीं सकेगा। और फिर तुमने तो पति से मिलन के लिए कितना जप-तप-व्रत किया है / इसपर शासनदेवी द्वारा बताई गई अवीधि भी समाप्त हो गई है। इसलिए हे स्वामिनी, अब तुम्हें अपने प्राणवल्लभ के दर्शन अवश्य होने चाहिए। जैसे सूखा हुआ सरोवर भी वर्षा ऋतुआने पर पानी से भर जाता है, वैसे ही अब तुम्हारे मन की पतिमिलन की अभिलाषा अवश्य पूर्ण होकर ही रहेगी।" जब प्रेमलालच्छी का उसकी सखियों के साथ यह वार्तालाप चल रहा था, तभी सोने के पिंजड़े में मुर्गे को लेकर नटराज शिवकुमार की नटमडंली विमल पुरी के राजा के राजदरबार म आ पहुँची। विमलापुरी के राजा मकरध्वज को प्रणाम कर नटराज शिवकुमार ने कहा, "हे राजन्, सौराष्ट्र देश की यह विमलापुरी और उसके राजा को देखने की लम्बे समय से हमारे मन म बहुत प्रबल इच्छा थी। आज हमारी यह इच्छा बहुत समय के बाद पूरी हो गई है। महाराज, वैसे तो हम अनेक देशों में घूमे हैं / हमने अब तक अनेक नगरियाँ देखी हैं / लेकिन एक आभापुरी और दूसरी विमलापुरी से प्रतिस्पर्धा करनेवाली कोई अन्य नगरी अब तक हमारे P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust