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________________ 168 श्री चन्द्रराजर्षि चरि और कुछ ही देर बाद मैं प्रेमलालच्छी से बिछुड़ गया था और फिर उसी कोटर में छिपक वीरमती और गुणावली के साथ आभापुरी लौट आया था। चंद्रराजा के मन में यह बात भी आ बिना नहीं रही कि यह वही नगरी है जहाँ आने के कारण मुझे अपने मनुष्य रुप को त्याग कमुर्गा बनना पड़ा था। आज सौभाग्य से फिर उसी नगरी में आ पहूँचा हूँ। इससे ऐसा निश्चितरू से लगता है कि इसी नगरी में मेरे दुःख का अंत होगा। कहाँ आभापुरी और कहाँ विमलापुरी ? कितनी दूर हैं ये दोनों नगरियाँ ? सामान्य रुपम तो आभापुरी से इतनी दूर विमलापुरी में आना आसान नहीं है। लेकिन सामान्य स्थिति में जा बात असंभव लगती है वही अवसर आने पर संभव बन जाती है। मेरे मन में यहाँ आने के प्रबल इच्छा थी। शायद इसीलिए विधाता ने मुझे पंछी बना कर यहाँ भेज दिया है। मुर्गे के रूप में होनेवाले चंद्रराजा के मन में जब विमलापुरी के उद्यान में ये बातें आ रही थी, उसी समय इधर राजमहल में प्रेमलालच्छी की बाँई आँख फड़क उठी। जब स्त्री की बाई आँख फड़क उठती है, तो वह उसके लिए शुभ शकुन होता है। इसके विपरीत जब पुरुष का दाई आँख फड़क उठती है, तो वह शुभ शकुन माना जाता है। जब प्रेमलालच्छी अपने महल में अपनी सखियों के साथ बैठी हुई था तो उसकी बाइ आँख जोर जोर से लगी। इसलिए प्रेमला ने अपनी सखियों से कहा, “हे बहनो, आज मेरी बाई आँख बहुत जोर से फड़क रही है। इससे आज मुझे मेरे प्रिय पतिदेव के दर्शन अवश्य होन चाहिए / आज मुझे निश्चय ही लग रहा है कि मेरे जीवन का पतिविरह का दु:खदायी समय समाप्त होगा। मेरा विवाह होने के बाद पूरे सोलह वर्ष बीत गए हैं। शासनदेवी ने भी मुझ आश्वस्त किया था कि विवाह के बाद सोलह वर्ष बीत जाने पर मेरे पतिविरह के दु:ख का अत अवश्य आएगा। अब शासनदेवी को बताई हुई वह लम्बी अवधि भी समाप्त हो गई हैं / लोकन अब तक मुझे इस बात का पता नहीं है कि मेरे जीवन में वह इष्ट योग कैसे आएगा ? कहाँ होंगी आभापुरी और कहाँ होंगे मेरे प्राणनाथ आभानरेश चंद्र ? विवाह करक सीलह वर्ष पहले वे जबसे यहां से आभापुरी गए हैं, तब से उनकी ओर से न कोई संदेश आया, न ही कोई पत्र ही आया। विवाह करके वे जबसे चले गए हैं, तबसे एक बार भी लौट कर यहा नहीं आए। अब तक तो उनका एक बार भी कोई संदेश तक नहीं आया। लेकिन मेरी बाई आँख फड़क रही है। समझ में नहीं आता कि वे मुझे दर्शन देने की कृपा कैसे करेंगे ? P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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