________________ 162 श्री चन्द्रराजर्षि चरि= छान मारा, लेकिन इस मुर्गे का पता नहीं चल पाया। अंत में कस कर छानबीन करते-करत सेवकों को इस बात का पता चल गया कि नटमंडली के पास एकमुर्गा है। सेवकों ने यह खबर मंत्री सुबुद्धि को दे दी। मंत्री ने अपनी पुत्री को बुला कर उसे बताय "बेटी, वह मुर्गा कल यहाँ आई हुई नटमंडली के पास है। वे लोग मेरे अतिथि हैं / अतिथि के पास एक मुर्गे के लिए याचना करना मुझे बिलकुल उचित नहीं झुंचता है। दूसरी बात य है कि ये नट लोग बड़े दुराग्रही होते हैं। इसलिए मैं मुर्गा माँगूं, तो भी शायद वे देने से इन्का करेंगे। जो होना था, सो हो गया। किसी के भाग्य में लिखी हुई बातों को झूठ सिद्ध करने के सामर्थ्य किसमें है ? इसलिए बेटी, तू वह मुर्गा पाने का आग्रह-हठ छोड़ दे। यही तुम्हारे आ मेरे लिए उचित है।" इसपर लीलावती ने कहा, “पिताजी, उस मुर्गे ने मुझे अपने प्राणप्रिय पति का विया कराया है। इसलिए वह मुर्गा मेरा शत्रु है। उसके प्राण हरण किए बिना मेरे मन को चैन नह मिलेगा। मेरा मन शांत नहीं हो सकेगा। इसलिए चाहे कुछ भी कीजिए, लेकिन वह मुर्गा किस भी हालत में मुझे ला दीजिए / जब तक वह मुर्गा मेरे हाथ में नहीं आता, तब तक मेरे लिए / अन्नजल वर्ण्य है। इसमें कोई परिवर्तन नहीं होगा।" पुत्री लीलावती की प्रतिज्ञा सुन कर मंत्री सुबुद्धि चिंता में पड़ गए / अंत में निरुपा 1. होकर मंत्री ने नटराज शिवकुमार को अपने पास बुलाया और उससे विनती की, "नटराज कृपा कर आपके पास पिंजड़े में पड़ा मुर्गा मुझे दे दीजिए।" ___ मंत्री की बिनती सुनकर नटराज ने स्पष्ट शब्दों में मंत्री को बताया, “हे मंत्रीजी, यह मुग | तो मेरे लिए प्राणस्वरूप है। यही मेरी आजीविका का एकमात्र आधार है। इतना ही नहीं, बाल्द यह मुर्गा ही हमारा राजा है, हमारा स्वामी है। आपकी पुत्री हमारे मुर्गे पर क्रोधायमान हुई है, यह मैंने सुना है / लेकिन जब तक में / शरीर में प्राण विद्यमान होंगे, तब तक हमारे लिए अपने प्राणों की तरह प्रिय होनेवाले इस मु का बाल भी बाँका करने को किसी में ताकत नहीं है। इस मुर्गे के प्राणों की रक्षा के लिए चोबार घण्टे सात सामन्त राजा अपनी हजारों को सेना के साथ सुसज्जित और सावधान रहते हैं। या नगर में मुकाम के लिए जगह की कमी होने के कारण ये सात राजा अपनी पूरी सेना के सा नगर के बाहर ठहरे हैं। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust