SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 155 नटों की ओर से स्पष्ट शब्दों में इन्कार सुन कर निराश हुआ राजसेवक म्लान मुख से राजा के पास लौट आया। उसने राजा से नटों के द्वारा कही गई सारी हकीकत कह सुनाई। राजसेवक की बात सुन कर राजा अत्यंत क्रुद्ध हो गया और उसने कहा, "मैं अभी अपने राज्य की सेना सुसज्जित करने का आदेश देता हूँ।" राजा ने रणदुंदुभि बजवाई / तुरन्त राजा की सेना युद्ध के लिए सुसज्जित ही गई और नटराज का मुकाबला करने को चल पड़ी। इधर नटराज शिवकुमार को जब यह पता चला कि राजा अरिमर्दन अपनी सेना लेकर / युद्ध करने के लिए आ रहा है, तब नटराज ने इशारा किया और तुरन्त उसके पास चंद्र राजा का रक्षा के लिए आकर रहे हुए सातों राजा अपनी सेना के साथ सुसज्जित होकर अरिमर्दन की सना की प्रतीक्षा करने लगे। इस प्रकार अरिमर्दन की सेना की प्रतीक्षा करने लगे। इस प्रकार अरिमर्दन की सेना का सामना करने के लिए शिवकुमार भी तैयार हो गया। __ आखिर दोनों पक्षों की सेनाएँ रणक्षेत्र पर एक दूसरे के आमने-सामने आी और घमासान लड़ाई प्रारंभ हो गई। नटराजा के पास अनगिनत मात्रा में और जान की बाजी लगानेवाली सेना थी। इसलिए कुछ ही समय में सिंहल राजा की सेना को मुँह को खा कर रणक्षेत्र को पीठ दिखा कर भागना पड़ा / सिंहल राजा को इस युद्ध में बुरी तरह से पराजित होना पड़ा। राजा पश्चात्तापदग्ध हो गया। उसने अपनी भूल के लिए जब नटराज से क्षमायाचना की तो उसने उदारता से राजा अरिमर्दन को प्राणदान दे दिया-मुक्त कर दिया। अरिमर्दन राजा को पराजित करने के बाद विजयी नटराज ने पिंजड़े के साथ नगाड़े बजाते हुए और चंद्र राजा की जयजयकार के गगनभेदी नारे लगाते हुए पोतनपुर की ओर प्रस्थान किया। कुछ ही दिनों में नटराज अपनी सारी मंडली के साथ पोतनपुर में पहुँच गया। अत्यंत विशाल, वैभवसंपन्न और आकर्षक पोतनपुर नगरी को देख कर नटों को ऐसा लगा मानो वे इंद्रपुरी पहुँच गए हों। पोतनपुर नगरी के राजा का नाम जयसिंह था। राजा के दरबार में सुबुद्धि नाम का मंत्री था। मंत्री की पत्नी मंजूषा अत्यंत सुंदर थी। इस दंपती के रूपगुणसंपन्न लीलावती नाम की एक कन्या थी, जो माता-पिता की बड़ी लाड़ली थी। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy