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________________ 154 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र रानी ने सिंहल राजा से फिर कहा, “हे नाथ, इस मुर्गे ने मेरा चित्त चुरा लिया है / मेरे प्राण इस मुर्गे में ही लगे हुए हैं। इसलिए यदि आप मुझे जिंदा देखना चाहते हैं तो नटराज का समझा कर या उसे बड़ा लालच दिखा कर वह मुर्गा मुझे ला दीजिए।" रानी की बात सुन कर राजा सिंहल ने कहा, "हे देवी ! एक पंछी के लिए तुझे इतना अधिक स्नेह और आग्रह नहीं दिखाना चाहिए। इस मुर्गे से ही तो इस नटमंडली का निर्वाह होता है। इस मुर्गे को मैं उनसे माँगू तो वे मुझे कैसे देंगे इसलिए तुझे मुर्गे के लिए जिद नहीं करनी चाहिए।" राजा की बात सुन कर रानी सद्गदित होकर बोली, “हे नाथ, यद्यपि आपका बात सोलहों आने सच है, लेकिन मैं क्या करूँ ? मुर्गे के बिना मुझे अपना जीवन बोझ की तरह लगता है। आप धन का लालच दिखाएँगे तो नटराज वह मुर्गा आपको अवश्य दे देगा। धन के बल पर इससंसार में कौन-सी बात असंभव है ?" / रानी का मुर्गे के लिए बहुत आग्रह देख कर राजा ने मुर्गा माँगने के लिए एक अत्यंत 'विश्वसनीय मनुष्य को नटराज के पास भेज दिया। उस मनुष्य ने नटराज के पास जाकर उसस मुर्गे की माँग की। इस पर नटराज शिवकुमार ने राजा से आए हुए मनुष्य से कहा, "हे भाई, यह कोई सामान्य मुर्गा नहीं, बल्कि हमारा राजा है। यदि यह कोई सामान्य पक्षा होता, तो हम उसे आपके महाराज को सहर्ष दे देते, लेकिन मुर्गा हमारा राजा होने से हम इस किसी भी तरह से आपके राजा को नहीं दे सकते हैं।" राजा के अंतरंग मनुष्य ने इस पर नटराज से कहा, "हे नटराज, हमारे महाराज यह मुर्गा नहीं चाहते है। उन्होंने अपनी रानी के लिए यह मुर्गा मँगाया है। हमारी नगरी की राना न जब से यह मुर्गा देखा है, उस समय से इस मुर्गे को पाने के लिए वे तिलमिला रही हैं / यदि तुम यह मुर्गा नहीं दोगे, तो रानीजी अपने प्राण त्याग देंगी।" राजा के निश्वस्त मनुष्य की बातें सुन कर सारे नट एक स्थान पर इकट्ठा हो गए आर उन सबने मिल कर राजा के मनुष्य को बताया, "भले ही तुम्हारे राजा की रानी अपने प्राण क्यों न त्याग दे, लेकिन हम किसी भी हालत में यह मुर्गा नहीं देंगे। जैसे तुम्हारे राजा को अपनी रान प्रिय है, वैसे ही हमें अपना यह मुर्गा प्रिय है।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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