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________________ 144 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र मुर्गे के सामने ऐसी विनम्रतापूर्ण बातें कहा कर उन दोनों ने उसके सामने विविध प्रकार के मेवे और मिठाइयाँ रखी और मुर्गे से उन्हें खाने के लिए प्रार्थना की। . नटराज के बार बार विनम्रतापूर्वक कहने पर मुर्गे ने अपने सामने रखी हुई मिठाइयाँ खाना प्रारंभ तो किया, लेकिन उसे बार बार अपनी विछूड़ी हुई पत्नी गुणावली की याद आ रहा थी, इसलिए मिठाइयाँ उसके गले से नीचे नहीं उतर रही थी। मिठाइयाँ गले में ही अटक कर रह जाती थी यह द्दश्य कुछ देर तक देख कर शिवमाला बोली, “महाराज, आप किसी भी तरह का चिंता मत कीजिए। कृपा कर आप ये मिठाइयाँ आनंद से खा लीजिए। उचित समय आने पर सब ठीक ही जाएगा।" शिवमाला की स्नेहपूर्ण बातें सुन कर मुर्गे के मन को कुछ शांति मिली। शिवमाला मुर्ग को अपने प्राणों से अधिक स्नेह प्रदान करते हुए पाल रही थी। इसलिए शिवमाला के साथ मुग के दिन अच्छी तरह बीतने लगे। इधर गुणावली ने अपने पति मुर्गे को मंत्री के हाथों में सौंप तो दिया, लेकिन मुर्गे के उसस | दूर होने के बाद उसकी दशा बड़ी विचित्र हो गई। मंत्री राजसभा का कामकाज समाप्त होने क / बाद गुणावली के महल में लौट आए। आकर उन्होंने देखा कि उनके मुर्गे को लेकर राजसभा / में जाते समय गुणावली जहाँ बैठी थी, वहीं पर वह इस समय भी बैठी हुई थी और निरतर ! आँसुओं की धारा बहाते हुए सिसक-सिसक कर रो रही थी। जो मनुष्य अपने प्रिय के संयोग में सुख मानता है, उसे उसी प्रिय व्यक्ति के वियोग म भारी दु:ख का सामना करना पड़ता है। अपने प्रिय व्यक्ति के विरह से होनेवाली वेदना बहुत - दुःखदायी होती है। ! संयोग में जो सुख मानता है उसे वियोग का दुःख भोगना ही पड़ता है। रानी गुणावली / को अपने पति मुर्गे के विरह में रोते हुए देख कर मंत्री का भी कंठ भर आया। मंत्री को अपने सामने पाकर गुणावली ने उनसे कहा, "हे मंत्रीजी, आप चाहे कुछ भी कीजिए, लेकिन मर प्राणाधार मुर्गे को वापस ला दीजिए। मैं उनके वियोग में जिंदा नहीं रह सकती हूँ। उनका वियोग मेरे लिए असह्य है।" P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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