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________________ 143 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र दूरस्थोऽपि न दूरस्थो, यो वै मनसि वर्तते। . जो अपने हृदय में निवास करता है, वह दूर रहने पर भी दूर नहीं होता। लेकिन जो दय से निकल गया है. वह पास रहने पर भी दर ही समझना चाहिए। इसलिए यह बात ध्यान में रख ले कि जब तक तेरे हृदय में मेरा स्थान है, तब तक मैं तुझे कभी नहीं भूलूँगा। है देवी, दूसरी बात यह है कि मुझे पूरा विश्वास है कि यह नटराज मुझे फिर से मनुष्य बना देगा। इसीलिए मैं उसके साथ जा रहा हूँ। यदि परमात्मा की कृपा से मेरी यह आशा सफल हुई तो मैं तुरन्त ही विदेश से लौट कर आऊँगा और तुझसे मिलूँगा।" भूमि पर मुर्गे के रूप में होनेवाले चंद्रराजा द्वारा लिखी गई ये बातें पढ़ कर गुणावली के हृदय को कुछ शांति मिली। उसने फिर एक बार मुर्गे को अपने हृदय से लगाया और फिर उसे पजड़ के साथ मंत्री सुबुद्धि के हाथ में दे दिया। मंत्री मुर्गे का पिंजड़ा लेकर तुरन्त वीरमती के पास आया और उसने वह पिंजड़ा वीरमती के हाथ में दे दिया। . वीरमती ने तुरन्त नटराज शिवकुमार की पुत्री शिवमाला को मुर्गा पिंजड़े के साथ इनाम करूप में दे दिया। मुर्गे को पिंजड़े के साथ इनाम के रूप में पाकर शिवमाला के आनंद का कोई पार नहीं रहा / इसका कारण यह था कि शिवमाला जानती थी कि यह मुर्गा ही महाराज चंद्र हैं। शिवमाला ने वीरमती को प्रणाम किया और मुर्गे को पिंजड़े के साथ लेकर वह अपने नवासस्थान की ओर चली आई। उसने अत्यंत आदर के साथ एक अत्यंत मूल्यवान शय्या पर मुग का पिजड़े के साथ रखा। फिर नटराज शिवकुमार और शिवमाला दोनों पिंजड़े में पड़े मुर्गे के सामने हाथ जोड़कर अत्यंत विनम्रता से बोले, "हे स्वामी, अभी तक हम सब बिलकुल अनाथ थे, लेकिन अब हमारे यहाँ आपके पधारने से हम सचमच सनात हो गए हैं। आजसे हम आपको अपना राजा मान कर तन-मन-धन से आपकी सेवा करेंगे। आपकी सेवा में हम अपनी ओर से कोई कसर नहीं रखेंगे। हमारे प्रबल पुण्योदय के कारण ही हमें आपकी सेवा करने का सुनहरा अवसर प्राप्त हो गया है। आज से हम प्रतिज्ञा करते हैं कि सबसे पहले आपकोअभिवादन करके आपकी जयजयकार किए बिना हम किसीके सामने अपनी नाटयकला प्रस्तुत नहीं करेंगे। महाराज, आप सुखपूर्वक हमारे यहाँ रहिए। हमको अपने सेवक ही मानिए। आप नि:संकोच होकर हमें आज्ञा दीजिए कि हम आपकी क्या सेवा करें। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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