________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र प्रेम रखेगा तो ही मैं उससे प्रेम रतूंगा। स्वार्थ से युक्त होनेवाला प्रेम सच्चा प्रेम नहीं हैं, प्रेम बिना किसी शर्त का ही होना चाहिए। प्रेम में. स्वार्थ की मिलावट नहीं होनी चाहिए। प्रेमरूपी दूध में स्वार्थरूपी खटास का छींटा पड़ते ही प्रेमरूपी दूध बिगड़ जाता है। प्रेम ‘दूध-पानी' जैसा होना चाहिए। रानी चंद्रावती अपने पति के सुख से सुखी और दु:ख से दु:खी होती थी। गुणवान् रानी चंद्रावती को पाकर राजा वीरसेन अपने को धन्य-धन्य मानता था। रानी वीरमती राजा वीरसेन और रांनी चंद्रावती के प्रति मन में अत्यंत द्वेषभाव रख कर अपना जीवन व्यतीत कर रही थी। समय बीतता गया और एक बार रानी चंद्रावती के गर्भ में एक अत्यंत पुण्यवान् जीव आया। रात को गर्भवती रानी चंद्रावती ने चंद्रमा को देखा। सुबह होते ही चंद्रावती ने पिछली रात को देखे हुए उत्तम स्वप्न की बात राजा वीरसेन से कही। स्वप्न की बातें सुन कर हर्षित हुए राजा ने स्वप्न का अर्थ बताते हुए अपनी प्रियतमा रानी चंद्रावती से कहा, ___"हे प्रिये, तू एक अत्यंत गुणवान्, पराक्रमी, महातेजस्वी, अत्यंत धर्मनिष्ठ और कामदेव के समान सुंदर पुत्ररत्न को जन्म देगी।" नौ महीने नौ दिन पूरे होते ही रानी चंद्रावती ने शुभ मुहूर्त पर एक सुंदर पुत्ररत्न को जन्म दिया। रानी की दासी ने दौडते हुए जाकर राजा वीरसेन को पुत्रजन्म की शुभ वार्ता सुनाई / अत्यंत हर्षित हुए राजा ने दासी को इतना दान दिया कि वह हरदम के लिए दास्यत्व से मुक्त हो गई और स्वतंत्र होकर खुशी से चली गई। . राजप्रासाद में पुत्रजन्म का समाचार वायुगति से सारी आभापुरी में फैल गया। सारे नगर में आनंद की हिलोरें लहराने लगीं / नगरवासियों ने अपने-अपने घरों के द्वारों पर बंदनवार बाँधे, कुंकुम के स्वस्तिकों से अपने घर सजाए। राजा ने पुत्रजन्म की खुशी में याचकों को खुल कर दान दिया। पशुओं को घास, पंछियों को चुग्गा, बीमारों को दवाएँ दे-दिला कर राजा ने अपनी अनुपम दानवीरता का परिचय दिया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust