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________________ 130 श्री चन्द्रराजर्षि चरि= सुबुद्धि मंत्री ने अपनी सेना में ऐसी हिम्मत भरी कि कुछ ही समय में आभापुरी का सन् सुरज्जित होकर राजा हेमरथ की सेना से लड़ने के लिए रणक्षेत्र की और चल पड़ी। रणदुदुभट बजने लगीं और उनकी ध्वनियों से सारा आकाश गूंज उठा। दोनों पक्षों की सेनाएँ आमसामने आ गई . दोनों सेनाओं के बीच घमासान युद्ध प्रारंभ ही गया हस्तिसेन से हस्तिसन् अश्वसेना से अश्वसेना और रथसेना से रथसेना जूझने लगी। दोनों पक्षों के सैनिक अपने जान की बाजी लगा कर लड़ रहे थे। राजा हेमरथ के मन में पराया राज्य छीन लेने की लालसा तो आभापुरी की सेना को सिर्फ अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता की रक्षा करने की तमन्ना था एक तरफ राज्य के प्रलोभन का प्रश्न था, तो दूसरी तरफ अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा की समस्त थी। प्राचीन शास्त्रों का टकशाली वचन है - यतो धर्मस्त तो जयः _ अर्थात् जहाँ धर्म होता है, वहाँ विजय भी होती है। आभापुरी की सेना का उद्देश्य श्रष था, उत्साह अदम्य था, इसलिए राजा हेमरथ की सेना आभापुरी की सेना के सामने लम्बे सम तक टिक नहीं सकी / हेमरथ की सेना रणक्षेत्र छोड़ कर भागने लगी। हेमरथ राजा को मुहक खानी पड़ी / मंत्री की आज्ञा के अनुसार आभापुरी के सैनिकों ने हेमरथ राजा को जावि अवस्था में कैद कर लिया। हेमरथ राजा के हाथपाँव बेड़ियों से जकड़ दिए गए। इस प्रका हेमरथ को बंदी बना कर और उसे अपने साथ लेकर विजयवाध बजाते हुए आभापुरा क विजयी वीर सेना राज्य की रानी वीरमती के पास आ पहुँची। सेना की ओर से सुबुद्धिमत्रा बंदी बनाए गए हेमरथ को रानी के सामने ला खड़ा किया। उन्होंने वीरमती से कहा, " / महारानी, हम आपके लिए एक अमूल्य भेंट ले आए हैं, उसे सहर्ष स्वीकार कर लीजिए। वीरमती ने अपने सामने हाथ जोड़ कर और मुँह नीचा करके खड़े हेमरथ राजा | बेड़ियों से जकड़ा हुआ देखा तो उसे जोरदार उपालंभ देती हुई बोली, “हे रणवीर ! कहा ग तेरा पराक्रम और अभिमान ? तूने आभापुरी का राज्य छीन लेने की घृष्टता क्यों का ? क्या पहले आभापुरी की सेना के पराक्रम का स्वाद नहीं चखा था ? क्या तू भूल गया कि तुझे प्रत्य बार आक्रमण करने के लिए आने पर पराजित होकर लौट जाना पड़ा था ? फिर तूने फिर / आभापुरी पर आक्रमण करने का दुस्साहस कैसे किया ? अरे, तुझे अपनी सामर्थ्य का तो विचार करना चाहिए था ! मेरे साथ लड़ाई की बात = रही, लेकिन तुझे तो मेरे मंत्री और मेरी बहादुर सेना से ही पराजय खानी पड़ी। बोल, कान P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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