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________________ 22 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र इस तरह से दिलासा देकर मंत्री ने सभी नगरजनों को अपने-अपने घर वापस भेज या। फिर सुबुद्धि मंत्री राजमाता वीरमती के पास गए। मंत्री ने वीरमती को वह सब बता दिया जो लोगों ने अभी-अभी कहा था। मंत्री ने वीरमती को बताया, “हे राजमाता, नगरजनों में तरह-तरह की चर्चा चल रही है। लोग कहते हैं कि राजमाता ने हमारे राजा को किसी गुप्त थान में रखा है। इसलिए मैं वस्तुस्थिति क्या है यह जानने के उद्देश्य से आपके पास आ पहुँचा हूँ। इसलिए हे राजमाताजी, बताइए कि आपके सुपुत्र और हमारी आभा नगरी के राजा चंद्र कहाँ हैं ? एक महीना हो गया, लेकिन वे एक बार भी राजसभा में नहीं पधारे / क्या आपने उन्हें कहीं रखा है, या कहीं भेजा है महाराज हमें कब दर्शन देंगे यह कृपा करके बताइए / आप राजमाता हैं, इसलिए आपको सभी बातों का अवश्य पता होगा। राजमाताजी, इस आभा नगरी का राज्य चलाना है और राज्य चलाना कोई छोटे बच्चों का खेल नहीं है। राजा की अनुपस्तिति के कारण प्रजा में बहुत असंतोष व्याप्त हो गया है / हो सकता है कि इस घटना से असंतुष्ट प्रजा बगावत कर बैठे। आग लगने से पहले ही कुआँ खोद रखना उचित है। पानी को बाढ़ आने से पहले ही उसे रोकने के लिए बाँध बनाकर तैयार रखना अच्छा है, योग्य है ! राजमाताजी, मैं इस आभा नगरी के राज्य का मुख्य मंत्री हूँ। राज्य की सुरक्षा के बारे में आपको सावधान करना मेरा परम कर्तव्य है। इसीलिए मैंने इतने विस्तार से सारी बातें आपके सामने स्पष्ट और सत्य रूप में कह दी हैं। सबकुछ जानते हुए भी यदि मैं आपको अंधेरे में रखू, कुछ न बताऊँ, और कल राज्य में कोई आँधीतूफान आ जाए तो आप मुझे दोष देंगी कि ये सारी बातें मालूम होते हुए भी तुमने पहले मुझे कुछ भी क्यों नहीं बताया ? इसीलिए राजमाताजी, मैं आपको यह सब इतना स्पष्ट रूप में बता रहा हूँ। आभानगरी के हर दो-राहे, चौराहे पर एक ही बात चर्चा का विषय बन गई है कि ‘राजमाता ने हमारे महाराज को कहीं छिपा कर रखा है।' इसीलिए माताजी, मेरी आपसे यही एकमात्र विनम्र प्रार्थना है कि आप मुझे तुरन्त बता दीजिए कि आपके सुपुत्र और हमारे महाराज आभानरेश कहां हैं ?' सुबुद्धि मंत्री की कही हुई इतनी युक्तियुक्त बातें सुन कर भी वीरमती के कानों की जू =क नहीं रेंगी। वीरमती पर इन सारी बातों को सुन कर कोई असर नहीं हुआ। इसके विपरीत, बुद्धि मंत्री की सारी बातें सुन लेने के बाद उसके कान उमेठते हुए क्रोधातुर होकर गर्जना P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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