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________________ 78 भीमसेन चरित्र लगा। भला इस संसार में धन का कितना महत्व है? धन के कारण ही व्यक्ति समाज में मान-सम्मान पाता है, पूजा जाता है। धन कई कर्मों क सिद्ध करता है। निर्धन पुरुष अगर गुणवान है तो धन के अभाव में उसके गुण प्रकाशित नहीं होंगे। जबकि उसी व्यक्ति के गुणों की पूजा होती है, जिसके पास गुण से अधिक धन सम्पदा हो। गुणहीन व्यक्ति सम्पत्ति के बल पर समाज में प्रतिष्ठा और मान-सम्मान प्राप्त कर लेते हैं। वास्तव में यहाँ धन और धनवान की बड़ी महिमा है। सचमुच इस जगत में धन सदृश कोई बन्धु बान्धव नहीं है। पुत्र-पली, सगे सम्बन्धी सभी साथी तब तक है, जब तक हमारे पास धन है। उनका स्नेह-प्यार भी धन सम्पदा के साथ साथ प्रायः घटता बढ़ता रहता है। जगत का व्यवहार ही ऐसा हो गया है। वैसे निर्धन पुरूष तो पृथ्वी पर भार स्वरूप माना जाता है। आज मेरी भी ऐसी ही दुर्दशा हो गई है। चोर मेरा धन, वस्त्र और बहुमूल्य अलंकार चुराकर ले गये और मैं अत्यन्त निर्धन, निराधार हो गया हूँ। साथ ही मेरे वस्त्र भी गन्दे व मैले कुचैले हो गये हैं। रास्ते की थकान व घिर आयी संकट की बदरी ने मुझे शरीर से भी कंगाल बना दिया है। मैं क्या करू? क्या न करू? कहाँ जाऊँ? तो क्या मुझे अब भीख माँगनी पड़ेगी? नहीं। नहीं! मुझसे ऐसा कभी नहीं होगा। मृत्यु को गले लगा लूंगा, किन्तु भीख मैं हर्गिज नहीं मांगुगा। तो मैं अब क्या करू?" इस प्रकार धन एवम् स्वयं की दीन हीनता का विचार करते-करते वह पुनः कर्म चिन्तन में निमग्न हो गया। "वास्तव में मेरा दुःख-दर्द तो ज्ञानी जन ही समझ सकते हैं। वे ही मेरी जिज्ञासा को शांत कर सकते कि मैं अपने किन दुष्कर्मों की सजा भुगत रहा हूँ। ____ यह सब कर्म की ही विडम्बना है। पूर्व जन्म में किये हुए शुभ अशुभ कर्मों का भुगतान ही इस जन्म में करना पड़ता है और जो किया है वह भोगना अवश्य है। तब वृथा चिन्ता भला किस लिये? कर्मराज ने कभी पक्षपात नहीं किया और ना ही कभी किसी को छोड़ा। बड़े-बड़े राजा महाराजा और रथी-महारथियों का भी उसने तनिक भी परवाह नहीं की बल्कि सबके साथ निष्पक्ष रह सदैव न्याय किया है। राजा रामचन्द्र को वनवास भेजा, बलीराजा को बन्दी बनवाया, पाण्डवों को स्वजन-स्वदेश का परित्याग करना पड़ा, राजा नल को राज्य से निष्कासित होना पड़ा और रावण सदृश महाबली शक्तिशाली राजा को भी पराजय का सामना करना पड़ा। यह सब कर्म की ही बलिहारी है। और इसी कर्म के कारण राजा हरिश्चन्द्र ने क्या कम दुःख उठाये है? इसी कर्म P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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