________________ भाग्य-नृत्य (भाग्य-नर्तन) 77 "अब मैं क्या करू? कहाँ जाऊंगा? मैं अपने दुःख दर्द की रामकहानी किसे सुनाऊ? भला मेरी व्यथा कौन सुनेगा? मैंने इस जन्म में ऐसा कोई पाप कर्म नहीं किया। दीन-हीन और मोहताजों को प्रायः दान दक्षिणा देता रहा हूँ। फिर भी आज मेरी यह दुर्दशा क्यों कर हो गई? नहीं। नही! यह सब अपने पूर्व जन्म के कर्मों का ही प्रतिफल मिल रहा है। वर्ना मेरा ही माँ जाया आज मेरे प्राणों का ग्राहक बनता? इस प्रकार मुझे वह स्वजन और स्वघर से विहीन करता? आज मेरा सब कुछ गया। राज पाट चला गया मित्र-परिवार और स्वजन छूट गये। अपनों को मानसिक त्रासदी का शिकार बनना पड़ा और मुझे व मेरे परिवार को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही है और रही सही कसर चोर ने धन चुरा कर पूरी कर ली। यह सब कर्म का ही प्रभाव है। मेरे पूर्व जन्म के पापकर्म ही उदित हो कर मेरा सर्वस्व छीनने पर तुले हुए हैं। अन्यथा ऐसा अघटित भला क्यों घटित होता? इस प्रकार कर्म की गहन लीला का चिन्तन-मनन करते हुए वह अपने मन को समझाने का रह रह कर प्रयल कर रहा था। पर मन कहीं मनाने से मान ले तो फिर मन कैसा? उसे तो एक मात्र बार बार मन में एक ही विचार उठ रहा था कि धन के अभाव में अब मेरा क्या होगा। इस तरह के विचारों में खोया वह सहज ही धन की प्रभुता के विषय में सोचने ~ Arthani Www AANTINECURITAININNRIT असहाय और निर्धन बने भीमसेन व सुशीला विलाप कर रहे है तो इधर - पके हुए दोनों कुंवरों को कंपों पर उठाकर चल रहे है। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust