________________ भीमसेन का पलायन "सुनन्दा! आज तक तुमने कभी मुझे सुरंग की जानकारी क्यों नहीं दी? और तुम्हे भला इस सुरंग की जानकारी कैसे मिली?" चलते चलते भीमसेन ने अचानक पूछा। सुनन्दा विनीत शब्दों में बोली : “राजन्। कई बातें ऐसी होती हैं जिसकी जानकारी किसी को नहीं दी जाती। समय आने पर ही उसकी जानकारी दी जाती है। और आज ऐसा समय आ गया है कि, मेरे लिये उसकी जानकारी देना जरूरी हो गया और मैंने वह जानकारी दे दी। वैसे सुरंग की बात मेरी माँ ने मरते समय मुझे बताई थी। और यह भी शत-प्रतिशत सत्य है कि, सुरंग की बात सिवाय मेरे किसी को भी नहीं है।" इस तरह बातों ही बातों में उन्होंने लगभग दो योजन लम्बा रास्ता काट लिया। तभी सुनन्दा ने कहा : "हे प्रभु! अब मुझे लौट जाना चाहिए। राजमहल में मुझे न पाकर हरिषेण आकाश-पाताल एक कर देंगे और अकारण ही खून की नदिया बह जाएँगी। वैसे आपसे बिछुडते हुए मेरा हृदय छिन्न-भिन्न हुआ जा रहा है। किन्तु विवश हो कर मुझे आप से अलग होना पड़ रहा है। स्मरण रहे नाथ! यहाँ से आधा योजन चलने पर सुरंग पूरी हो जाएगी और घना जंगल आरम्भ होगा। जंगल को पार करने पर एक गुफा आयेगी और गुफा के पार बस्ती आरम्भ होगी। तत्पश्चात् आपको जो अच्छा लगे वह करियेगा... जिस ओर जाना चाहें उस ओर निकल जाइएगा।" IIIIIIIIIIILLLLLLLIAL PAHAAR तामा सुनन्दा सुरंग मार्ग द्वारा भीमसेन को सपरिवार ले जा रही हैं। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust