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________________ भीमसेन चरित्र जरा भी त्रुटि रह गयी तो सम्बन्धित सैनिक का सिर कलम कर दिया जायगा। सैना नायक का आदेश पा कर सैनिक सावधान हो गये तथा गीद्ध दृष्टि से महल की चौकसी करने लगे। भीमसेन ने महल से बाहर झाँका तो हरिषेण के सैनिक खुली तलवार लिये घूमते पाया। सहसा वह गहन विचार में खो गया। 'अब क्या करू? बाहर सुरक्षित कैसे निकला जाय? और अगर बाहर नहीं निकल सका तो प्राणों की रक्षा किस प्रकार सम्भव है?" मारे चिन्ता के वह आकुल-व्याकुल हो गया। . सिर पर संकट का पहाड़ टूट पड़ा अनुभव कर सुशीला का हृदय अनायास ही व्यथित् हो उठा। उसके कोमल हृदय पर आघात लगा। उसे एक ही चिन्ता खाये जा रही थी, 'अब मेरी सन्तान का क्या होगा? उनकी प्राण रक्षा कैसे कर पाऊँगी। अभी तो उन्होने देखा ही क्या है? और कम उम्र में लेने के देने पड़ गये। उफ! कैसी भयंकर विपदा आ पड़ी है।' इस विचार में निमग्न वह सहसा मूर्छित होकर जमीन पर लुढ़क गयी। शीघ्र ही भीमसेन और सुनन्दा दौड़कर उसके पास गये। उसे जल के छींटे देकर उसकी मूर्छा को दूर किया गया। चेतना आने पर वह आन्तरिक वेदना से कराह उठी। उसका अंग प्रत्यंग शिथिल हो गया। तदुपरान्त भी उसने साहस नहीं खोया और आने वाले हर संकट और विपत्ति का सामना करने के लिये वह सन्नद्ध हो गयी। ___ सुनन्दा ने भीमसेन से कहा : 'राजन् आप रानी माँ और कुंवर को लेकर शीघ्रातिशीघ्र यहां से पलायन कर जाइए।' सुनन्दा ने अस्वस्थ हो, अधीरता से कहा। "परन्तु सुनन्दा! महल के बाहर सशस्त्र संतरी पहरा जो दे रहे है। ऐसी विकट परिस्थिति में भागना किस प्रकार सम्भव है? ऐसा करना महज मौत को ही निमंत्रण देना है।" भीमसेन ने असंयत हो कर तीव्र स्वर में कहा। "राजन्। आप इस बात की तनिक भी चिन्ता न करें। मुझे महल के गुप्त मार्ग की जानकारी है। आप चुपचाप उस मार्ग से निकल जायें। प्रातः काल तक तो आप नगर स दूर-सुदूर जंगल में निकल जायेंगे और कानोंकान किसी को खबर तक नहीं पड़ेगी।" सुनन्दा की बात सुनकर भीमसेन ने शीघ्र ही जाने की तैयारी कर ली। उसने दोनों कुवरों को गोद में उठा लिया, सुशीला को साथ ले लिया। मार्ग व्यय के लिये कुछ सुवर्ण-मुद्रा और हथियार ले लिये और सुनन्दा का अनुसरण करते हुए शीघ्र ही सुरंग तक पहुँच गये। सुनन्दा ने सुरंग के द्वारा की कल दवाई। कल दबाते ही सुरंग का गुप्त द्वार यकायक खुल गया। सबके सुरंग में प्रवेश करते ही सुनन्दा ने पुनः द्वार बन्द कर दिया। और हाथ में मशाल उठाये सबका मार्ग-प्रदर्शन करते हुए आगे-आगे चलने लगी। ITTITI P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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