________________ 62 भीमसेन चरित्र किया। कानाफूसी सुनकर भीमसेन तुरन्त ही जग पड़ा। सुनन्दा को यों घबरायी हुई निहार आश्चर्य चकित हुआ। उसने अधीरता से पूछा : "सुनन्दा! क्या बात है? तुम इतनी घबराई हुई क्यों हो? रानी और कुंवर तो कुशल है न?" आसपास कोई सुन न ले, इस बात की सावधानी रखती हुई धीमी आवाज में सुनन्दा ने सारी बातें उसके कान पर डाल दी। भीमसेन यह सुनकर विचार मग्न हो गया। सोचने लगा : "अहा! न जाने यह कैसी कर्म की गति है? मेरा ही बन्धु आज मुझे मारने पर उतारू है, मेरे प्राण हरण के लिये तत्पर हो गया है। आज उसका मन स्वार्थ से सराबोर हो गया है। सत्ता के मद ने उसे अन्धा बना दिया है। उफ! स्त्री के मोहपाश ने उसे विवेक शन्य बना दिया है। छि छि, कर्म की यह कैसी विचित्रता? नहीं तो क्या सहोदर भाई ही भाई के विरुद्ध ऐसा षड़यन्त्र रचाता? किन्तु उसे दोष देने से भला क्या लाभ? कर्म ही ऐसा घृणित कार्य हालत में मुझे अब सर्व प्रथम रानी व कुंवर के प्राणों की रक्षा करनी होगी। यदि मैं जीवित रहा तो यह धन सम्पदा पुनः प्राप्त हो सकती है, किन्तु उन्हें अगर कुछ हो गया तो मुझे आजीवन हाथ मलते रहना पड़ेगा। अतः सर्व प्रथम उन्हें बचाने की व्यवस्था करनी चाहिए। IITMITT HINDI M ARAT हरिषेण की बातें सुनकर सुनन्दा भीमसेन को वाकिफ़ कर रही हैं। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust