________________ 46 भीमसेन चरित्र - गुरू भगवन्त की ऐसी प्रभावकारी वाणी सुनकर गुणसेन का हृदय सहसा धार्मिक भावों से उभरने लगा। उस दिन से वह अधिकाधिक धर्मपरायण बन गया। भीमसेन तथा हरिषेण ने तो वहीं पर समकित व्रत (सम्यक्त्व) स्वीकार कर लिया। ठीक वैसे ही अन्य धर्मावलम्बियों ने सानन्द स्वेच्छया जैन धर्म अंगीकार किया। व्याख्यान की पूर्णाहुति के पश्चात् गुरूदेव को वन्दन कर राजा सपरिवार राजमहल लौट गया। तत्पश्चात् उसका मन सांसारिक प्रवृत्तिओं से लगभग विरक्ति अनुभव करने लगा। एक दिन रात्रि के समय वह शान्त चित्त से आत्म-चिन्तन करने लगा : उफ्! पूर्व जन्म के पुण्योदय से प्राप्त मानव भव मैंने आज तक अर्थहीन प्रवृत्तियों में ही नष्ट कर दिया। भौतिक सुखों के लिये ही मैं रात-दिन संघर्ष करता रहा और चिर-सुख (शाश्वत-सुख) देने वाले सम्यक्त्व व्रत की भूलकर भी आराधना नहीं की। संसार का परित्याग कर त्याग मार्ग का अवलम्बन करने वाले ये महात्मा धन्य हैं। संसार और सांसारिक गति विधियों ठीक वैसे ही विषय-वासनाओं से सदैव मुक्त रहकर मात्र आत्मज्ञान एवं आत्मचिन्तन में अहर्निश रत रहने वाले ऐसे दिग्गज मुनि भगवन्तों को हजार हजार धन्यवाद! वास्तव में इन का ही जीवन सार्थक हैं। ML0 SHEE LASS Muttha A nuviuuuNummmmmmURI हरिमोमहरा पूज्य आचार्यश्री के मंगलमय "नित्यारग पारगा होह" आशीर्वाद रूप वासक्षेप लेते हुए राजा गुणसेन व परिवार जना . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust