________________ 41 सुशीला सन्तोष एवम् हार्दिक आनन्द की अनूढी अनुभूति हुयी है। फिर भी राजगृही से प्रयाण किये हुए पर्याप्त समय व्यतीत हो गया है। अतः अब हमें जाने की अनुज्ञा प्रदान करेंगे तो अच्छा होगा। सफर लम्बा है और मार्ग में कई दिन लग जाएँगे।" "वाह! इतनी भी.क्या जल्दी है? अभी तो आपने कौशाम्बी भ्रमण किया ही कहाँ है?" कुछ दिन और रुक जाइए... आखिर जाना तो है ही... उस समय हम नहीं रोकेंगे।" प्रत्युत्तर में राजा मानसिंह ने रुकने के लिये आग्रह करते हुए कहा। किन्तु गुणसेन और अधिक समय रुकने की स्थिति में नहीं थे। उन्होंने राजगृही-गमन का आग्रह जारी रखा। फलतः विवश होकर राजा मानसिंह ने कन्या को विदा करने की तैयारियाँ आरम्भ की। कई बार इच्छा के विरुद्ध भी हमें आचरण करना पड़ता है। मानसिंह ने सजल नयन कन्या को विदा किया। महारानी कमला ने सुशीला को विदा करते हुए कहा : "बेटी! कुल की शोभा में अभिवृद्धि हो, यों ससुराल में वास करना। आज से सास-ससुर कोही माता पिता तुल्य समझ कर दिन-रात उनकी सेवा में प्रस्तुत रहना। अपने स्वास्थ्य और शील का सदैव ध्यान रखना। जीवन में इससे बढ़कर कोई चीज नहीं है। शील नारी जाति का सर्वश्रेष्ठ आभूषण है। अतः प्राणों से भी अधिक उसका जनत करना।" ___सुशीला के करुण क्रंदन से वातावरण व्याप्त हो गया। माता-पिता के चरण स्पर्श कर उसने आशीर्वाद ग्रहण किया और रथ में भीमसेन से सट कर बैठ गयी। अनायास ही उसकी आँखों से सावन भादो की झड़ी लग गयी, तिस पर भी मारे शर्म के, विनय और संकोच के उसका अंग-अंग सकुचा रहा था। इस प्रसंग पर राजा मानसिंह ने बतौर दहेज के एक सहस्र हाथी, दो सहस्र उमदा नस्ल के घोड़े, कई दास-दासियाँ और एक लक्ष सुवर्ण मुद्राएँ प्रदान की। ठीस इसी तरह सुशीला को छह जोड़ रल कंगन, रलहार, बाजुबंद, अंगुठियाँ और बेश कीमती वस्त्र अलंकार भेंट स्वरूप प्रदान किये। जब विदा की वेला आयी तब सभी के हृदय विदीर्ण हो उठे। सुशीला की कनिष्ठ भगिनी सुलोचना, सखी सहेलियाँ और अनगिनत सेविकाओं के रूदन से बारातियों की आँखें भी आर्द्र हों उठीं। "पुत्री! अपने को संभालना! स्वास्थ्य का हमेशा ध्यान रखना। पति को परमेश्वर समझ कर उसकी पूजा करना। अपनी कुशल क्षेम की सूचना देते. रहना, सास-ससुर के प्यार की अधिकारिणी भी बनना न भूलना और सदैव धर्माचरण करना। भगवान जिनेश्वर देव का नियमित रटन करना।" आदि शिक्षा प्रधान विभिन्न स्वरों के साथ सुशीला को विदा किया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust