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________________ सुशीला कलाओं से विकस्वर है। इतना सब होने पर भी मैंने उसमें रंचमात्र भी उच्छृखलता या उद्दण्डता के दर्शन नहीं किये। मैंने अपना अधिक तर समय उसके साथ ज्ञान चर्चा करने में व्यतीत किया और तदुपरान्त ही मैंने यह निश्चय किया कि ऐसी योग्य राजकन्या ही हमारे युवराज के लिये सर्वस्वी श्रेष्ठ पात्र है। ठीक वैसे ही राजकुमार भीमसेन सम्बन्धित पूर्ण विवरण से उन्हें ज्ञात करा दिया। उनकी छवि दिखायी। उन्होंने जी भरकर तस्वीर को देखा। मुझसे कई प्रश्न पूछे। तत्पश्चात् राज परिषद का आयोजन कर समस्त सम्बन्धी, राज परिवार और नगरजनों की उपस्थिति में इस सम्बन्ध की घोषणा कर मेरा उचित सम्मान किया। काम समाप्त होते ही मैं वायुवेग से राजगृही लौट आया हूँ। मार्ग में कहीं रुकने अथवा विश्राम की परवाह किये बिना आपकी सेवा में उपस्थित हूँ। "धन्य! सुमित्र, धन्य! तुम्हारी बुद्धि - चातुर्य एवम् उत्तम कार्य के लिये शतशः अभिनन्दन। सचमुच तुमने बहुत ही उच्च कुल की कन्या खोजी है। अब हमें भी खूब धूमधाम तथा आडम्बर पूर्वक विवाह की तैयारियाँ करनी पडेगी।" "हाँ, महाराज!, राजा मानसिंह ने यह कार्य जितना सम्भव हो शीघ्र ही सम्पन्न करने की इच्छा प्रदर्शित की है। अतः हमें विलम्ब नहीं करना चाहिए।" "तो आज से ही उसकी तैयारियां आरम्भ कर दो। शुभ कार्य में भला विलम्ब कैसा। हम भी शुभ मुहर्त में कौशाम्बी के लिये प्रस्थान कर देंगे।" "जैसी आपकी आज्ञा" सुमित्र ने राजा को प्रणिपात करते हुए सोत्साह कहा। "अरे हाँ! सुमित्र! यह लो रत्नहार। सगाई निमित्त मेरी ओर से तुम्हारा उपहार। साथ ही यह साण्डनी भी तुम्हें ही पुरस्कार रूप में भेंट है।" ___ "दीर्घ आयु हो राजन्। दीर्घायु! आपकी सुख समृद्धि हमेशा ही बनी रहे।“ सुमित्र ने प्रणाम कर उल्लसित स्वर में कहा और आगे बढ़कर रत्नहार स्वीकार किया। तत्पश्चात् गुणसेन ने शीघ्र ही राजलिपिज्ञ (मुंशी) को सुवर्ण अक्षरो में लग्न पत्रिका तैयार करने का आदेश दिया और एक साण्डनी सवार के साथ तुरन्त कौशाम्बी नगर प्रेषित किया तथा सन्देश प्रदान किया : "आप भी लग्न की तैयारी आरम्भ कर दें। बारात लेकर हम शीघ्र ही पहुंच रहे है।" ठीक वैसे ही उसी दिन राजगृही के प्रतिष्ठित सज्जन एवम् सम्माननीय श्रेष्ठियों को विवाह का निमन्त्रण भेज दिया। साथ ही समस्त राज्य में विवाह की तैयारियाँ आरम्भ करने का आदेश दिया। देखते ही देखते विवाह की तैयारियों में राजगृही नगरी आकण्ठ डूब गयी। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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