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________________ 34 भीमसेन चरित्र सम्बन्ध पक्का कर ही आये हो तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि, वह हमारे राज गौरव के अनुकूल ही होगी।" “महाराज! राजगृही से प्रस्थान करने के अनन्तर मैंने कई देशों की परिक्रमा की। अनेकों राजमहल और भव्य प्रासाद देखने का मुझे अवसर मिला। कई राजकन्याओं और श्रेष्ठी कन्याओं का निरीक्षण किया। परन्तु जिस राजकन्या के साथ कुंवर भीमसेन का रिश्ता निश्चित किया है, उस जैसी योग्य राजकन्या मैंने अन्यत्र कहीं नहीं देखी। उस जैसा उच्च कुल व श्रेष्ठ संस्कार मुझे कहीं दृष्टिगोचर नहीं हुए। वत्स नामक देश में कौशाम्बी नाम का एक नगर है। वहाँ राजा मानसिंह का आधिपत्य है। राजा मानसिंह महा प्रतापी व पराक्रमी राजा होने के साथ साथ न्याय परायण एवम् नीतिवान भी है। जैन धर्म में उनकी पूर्ण आस्था है। उनकी सातों पीढ़ियाँ जन्म एवम् कर्म से जैन धर्म की अनुरागी है। उसके दो कन्याएँ हैं। ठीक उसी प्रकार आपके भी दो कुंवर है। राजा मानसिंह ने अपनी पुत्रियों को चौंसठ कलाओं की शिक्षा प्रदान की है। इस कार्य के लिये राजा ने विशेष रूप से अपने महल में विद्वानों, शास्त्रियों और विज्ञों को रोककर, अपनी पुत्रियों को प्रवीण बनाया है। * ज्येष्ठ राजकन्या का नाम सुशीला है। नाम से भी अधिक वह जन्मगत गुणों से सुशील है। कनिष्ठ पुत्री सुलक्षणा भी श्रेष्ठ है। वह नाजुक व कमनीय वदन की स्वामिनी हैं। स्वर्ण की आभा की भाँति वे देदिप्यमान हैं। गुलाब की पंखुड़ियों जैसी उनकी मांसल काया है। प्रवालने उनके होठों का रंग चुराया है। हिरनी से चञ्चल नयन हैं। हंसती है तब ऐसा प्रतीत होता हैं मानो पास में ही कहीं झरना कलकल नाद करता हो। वे जब बोलती हैं तब ऐसा लगता है, मानो आम की बगिया में कोयल कूक करती हो। कमल की भाँति उनके हाथ कोमल हैं। सोने के कंगन उनकी कलाइयों की शोभा में अभिवृद्धि करते प्रतीत होते हैं। मस्तानी चाल से सहसा ... राजहंसी का भ्रम होता है। . राजन्। यह सब तो कन्या का केवल बहिरंग मात्र है। किन्तु आन्तरिक सौन्दर्य तो अत्यंत अनुपम और ब्रह्माण्ड में सबसे निराला है। उसकी बुद्धि कुशाग्र है। राजनीति और राज समस्या वह सरलता से समझ लेती है। उसकी विनयशीलता का तो कहना ही क्या? पूछने पर ही वह राजकाज के अटपटे प्रश्नों पर सलाह देती है। बिना पूछे सलाह प्रदान करने की वह आदी नहीं है। कितना-किसको सम्मान प्रदान करना चाहिए इसकी उसे अच्छी समझ है। पात्रता की उसे बहुत अच्छी परख है। मधुर भाषी है। छोटों के साथ वह छोटी बन जाती है और बझे के साथ बड़ी। स्वभाव में लेशमात्र की उग्रता नहीं है। शांत व सरल चित्त ही उसकी पहचान है। यों तो स्त्री को चंचल माना गया है। परन्तु वह शत-प्रतिशत उससे विपरीत भिन्न स्वभाव की है। उसका यौवन सोलह P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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